पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति इन दिनों बेहद नाजुक दौर से गुजर रही है। एक ओर जहां सीमाओं पर भारत के साथ तनाव और आतंकवाद के मुद्दों ने उसकी अंतरराष्ट्रीय साख को नुकसान पहुंचाया है, वहीं दूसरी ओर देश के भीतर आर्थिक नीतियों की असफलता, बढ़ता कर्ज और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की कठोर शर्तों ने उसकी अर्थव्यवस्था को गहरे संकट में डाल दिया है।
जीडीपी ग्रोथ में भारी गिरावट, सरकार ने घटाया अनुमान
पाकिस्तान ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स (PBS) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी ग्रोथ रेट का अनुमान 3.6% से घटाकर 2.68% कर दिया है। यह गिरावट इस बात का संकेत है कि पहले से ही आर्थिक तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान के हालात और बिगड़ने वाले हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि निवेश में कमी, महंगाई, राजनीतिक अस्थिरता और खराब वित्तीय प्रबंधन इसकी प्रमुख वजहें हैं।
कर्ज के बोझ तले दबा पाकिस्तान
वर्तमान में पाकिस्तान पर कुल 131 अरब डॉलर का बाहरी कर्ज है, जो उसकी जीडीपी का करीब 42% है। यह कर्ज न केवल IMF से, बल्कि चीन और अन्य द्विपक्षीय और बहुपक्षीय एजेंसियों से भी लिया गया है। IMF के आंकड़ों के अनुसार, पाकिस्तान अब दुनिया के शीर्ष पांच कर्जदार देशों में शामिल हो गया है।
हालात इतने खराब हो चुके हैं कि पाकिस्तान अपनी वित्तीय जरूरतें पूरी करने के लिए नए कर्ज लेने पर निर्भर हो गया है। इससे देश की क्रेडिट रेटिंग भी प्रभावित हुई है, जो निवेशकों के भरोसे को और कमजोर बनाता है।
IMF की नई शर्तें: राहत कम, सख्ती ज्यादा
हाल ही में IMF ने पाकिस्तान को 1 अरब डॉलर की लोन किस्त जारी करने की मंजूरी दी है, लेकिन इसके साथ ही 11 नई शर्तें भी जोड़ दी गई हैं। इन शर्तों के अनुसार:
- पाकिस्तान को 17.6 ट्रिलियन पाकिस्तानी रुपये के संघीय बजट को संसद से पास कराना होगा।
- बिजली बिलों पर उच्च सरचार्ज लगाना अनिवार्य किया गया है।
- पुरानी कारों के आयात की अनुमति 3 से बढ़ाकर 5 साल करनी होगी।
- स्पेशल टेक्नोलॉजी जोन और इंडस्ट्रियल पार्क के लिए दी जा रही सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए रोडमैप बनाना होगा।
इन सख्त शर्तों ने न केवल आम जनता की मुश्किलें बढ़ा दी हैं, बल्कि व्यापार और निवेश के माहौल को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है।
भारत-पाक तनाव: आर्थिक सुधारों पर और संकट
हाल ही में पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत एयर स्ट्राइक कर आतंकियों को निशाना बनाया। इसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव गहरा गया, हालांकि 10 मई को युद्धविराम की घोषणा की गई।
IMF ने चेतावनी दी है कि भारत-पाकिस्तान के बीच यदि तनाव फिर से बढ़ता है, तो इसका सीधा असर पाकिस्तान के राजकोषीय और सुधार लक्ष्यों पर पड़ेगा। यह चेतावनी IMF के द्वारा पाकिस्तान को दी गई बेलआउट राशि की अगली किस्त को भी संकट में डाल सकती है।
वैश्विक मंचों पर छवि को नुकसान
एक तरफ आतंकी पनाहगाह के रूप में पहचान, दूसरी तरफ आर्थिक तंगी ने पाकिस्तान की वैश्विक छवि को बुरी तरह प्रभावित किया है। IMF की मदद मिलने के बाद भी वैश्विक समुदाय में गुस्सा देखने को मिला, क्योंकि पाकिस्तान को कर्ज देने को लेकर अनेक देशों ने सवाल उठाए हैं।
इसके अलावा FATF (Financial Action Task Force) की ग्रे लिस्ट से बाहर आने के बावजूद पाकिस्तान पर निगरानी बनी हुई है, जो निवेश के लिए एक और बाधा है।
घरेलू मोर्चे पर हालात चिंताजनक
देश में महंगाई दर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी है, जिससे आम जनता की कमर टूट चुकी है। ईंधन, बिजली और खाद्य वस्तुओं की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है। दूसरी ओर बेरोजगारी बढ़ रही है और निजी क्षेत्र का विस्तार लगभग ठप पड़ गया है।
सरकार द्वारा लगातार टैक्स में वृद्धि, सब्सिडी में कटौती और खर्चों में कमी जैसे कदम उठाने के बावजूद स्थिति संभलती नजर नहीं आ रही। आम आदमी की जेब पर बोझ बढ़ता जा रहा है और सरकार के पास इस संकट से निपटने की कोई ठोस रणनीति नहीं दिख रही।
क्या निकल सकता है समाधान?
पाकिस्तान को इस आर्थिक संकट से उबरने के लिए दीर्घकालिक योजनाएं बनानी होंगी। केवल IMF और अन्य संस्थानों से कर्ज लेना कोई स्थायी समाधान नहीं है। उसे अपने घरेलू उत्पादन, निर्यात और निवेश को बढ़ावा देना होगा।
इसके अलावा राजनीतिक स्थिरता, पारदर्शी प्रशासन और आतंकवाद पर सख्त नियंत्रण जैसे कदम उठाना जरूरी है, ताकि देश में भरोसे का माहौल बने और निवेशकों का विश्वास लौटे।
पाकिस्तान इस समय बहुआयामी संकट से जूझ रहा है, जिसमें आर्थिक, राजनीतिक और कूटनीतिक सभी पहलू शामिल हैं। IMF की शर्तों ने उसके लिए नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं, वहीं सीमाई तनाव और वैश्विक मंचों पर उसकी छवि लगातार गिरती जा रही है। यदि पाकिस्तान ने समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए, तो यह संकट एक बड़े सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल में तब्दील हो सकता है।