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ई-फार्मेसी पर सख्ती: बिना पर्ची दवा बेचने वालों पर सरकार की नजर

10 से 60 मिनट में दवा पहुंचाने का वादा करने वाले ई-फार्मेसी प्लेटफॉर्म्स अब सरकार की सख्त निगरानी में आ गए हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय इन प्लेटफॉर्म्स की कार्यप्रणाली को लेकर गंभीर हो गया है और जल्द ही इन्हें नियंत्रित करने के लिए एक नया कानून लाने की तैयारी कर रहा है। 

नई दिल्ली: भारत में दवाओं की ऑनलाइन खरीदारी अब आम होती जा रही है, लेकिन इसी डिजिटल सुविधा के बढ़ते विस्तार ने सरकार की चिंता भी बढ़ा दी है। 10 से 60 मिनट के भीतर दवा डिलीवरी का दावा करने वाली कंपनियों पर अब सरकार की पैनी नजर है। स्वास्थ्य मंत्रालय अब इस पूरे क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए एक नया और विशेष कानून लाने की तैयारी कर रहा है। इसका मकसद ई-फार्मेसी प्लेटफॉर्म्स की जवाबदेही तय करना और मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

तेजी से बढ़ता डिजिटल फार्मेसी बाजार

कोविड-19 महामारी के बाद से देश में ऑनलाइन मेडिकल सेवाओं की मांग में जबरदस्त उछाल आया है। लोगों की प्राथमिकता घर बैठे दवाएं मंगवाने की हो गई है। इसे देखते हुए Tata 1mg, Netmeds, PharmEasy, Apollo 24|7 जैसे बड़े ब्रांड्स के साथ-साथ कई स्टार्टअप्स भी इस क्षेत्र में उतर चुके हैं। हाल ही में PhonePe के 'Pincode' और Zeelab Pharmacy जैसे प्लेटफॉर्म्स ने 10 से 60 मिनट के भीतर दवाएं पहुंचाने की सेवा शुरू की है।

हालांकि, यह सेवा जहां एक ओर उपभोक्ताओं के लिए फायदेमंद नजर आती है, वहीं इसके संचालन और प्रक्रिया में लापरवाही को लेकर सवाल उठने लगे हैं। सरकार के पास ऐसी कई शिकायतें पहुंची हैं जिनमें इन कंपनियों पर डॉक्टर की पर्ची के बिना दवाएं बेचने, स्टोर की स्वच्छता में लापरवाही, और संवेदनशील दवाओं की बिना निगरानी बिक्री जैसे आरोप लगे हैं।

मरीजों की सुरक्षा पर मंडरा रहा खतरा

स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, ई-फार्मेसी कंपनियों को लेकर मिल रही शिकायतें अब इतने गंभीर स्तर पर पहुंच चुकी हैं कि बिना तत्काल हस्तक्षेप के भविष्य में मरीजों की सुरक्षा से बड़ा समझौता हो सकता है। अधिकारी ने बताया कि कुछ कंपनियां शक्तिशाली दवाएं जैसे ऐंटीबायोटिक, स्टेरॉइड और स्लीपिंग पिल्स भी बिना वैध प्रिस्क्रिप्शन के उपलब्ध करा रही हैं, जो सीधे तौर पर स्वास्थ्य से खिलवाड़ है।

इतना ही नहीं, डिलीवरी के लिए उपयोग किए जा रहे 'डार्क स्टोर्स' यानी वेयरहाउस को लेकर भी गंभीर आरोप लगे हैं। इन स्टोर्स में साफ-सफाई, तापमान नियंत्रण और दवाओं के सुरक्षित भंडारण की समुचित व्यवस्था नहीं है। इससे दवाओं की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है, जो मरीज की सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है।

कानून की कमी और नियमन की चुनौती

भारत में अभी तक दवाओं की ऑनलाइन बिक्री को लेकर कोई स्पष्ट और समर्पित कानून नहीं है। मौजूदा 'Drugs and Cosmetics Act, 1940' में केवल दवाओं की पारंपरिक बिक्री को ही शामिल किया गया है। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के संचालन, स्टॉकिंग, प्रिस्क्रिप्शन की वैधता, डेटा सुरक्षा और आपात स्थिति में जवाबदेही को लेकर कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश मौजूद नहीं हैं। यही वजह है कि सरकार इन प्लेटफॉर्म्स के खिलाफ त्वरित और प्रभावी कार्रवाई करने में असहाय महसूस करती है।

स्वास्थ्य मंत्रालय अब इस कमी को दूर करने के लिए एक नया कानून लाने की दिशा में तेजी से काम कर रहा है, जिसमें ई-फार्मेसी को लेकर विस्तृत प्रावधान शामिल होंगे। इस कानून के माध्यम से दवाओं की बिक्री में पारदर्शिता, मरीजों की सुरक्षा, तकनीकी निगरानी और जिम्मेदार संचालन सुनिश्चित किया जाएगा।

उपभोक्ताओं की संख्या में भारी वृद्धि

Crisil की रिपोर्ट के अनुसार, भारत का रिटेल फार्मेसी बाजार लगभग 2.4 लाख करोड़ रुपये का है। इसमें केवल 3-5 प्रतिशत हिस्सा ही फिलहाल ई-फार्मेसी का है, जबकि अमेरिका, ब्रिटेन जैसे विकसित देशों में यह हिस्सेदारी 22-25 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है। रिपोर्ट बताती है कि अगर इस क्षेत्र को सही तरीके से रेगुलेट किया जाए, तो भारत में ई-फार्मेसी का योगदान आने वाले वर्षों में 15 से 20 प्रतिशत तक पहुंच सकता है।

देश के अधिकांश हिस्सों, खासकर शहरी और अर्ध-शहरी इलाकों में ऑनलाइन दवाओं की मांग तेजी से बढ़ रही है। बुजुर्ग, बीमार या व्यस्त जीवनशैली वाले लोग डिजिटल फार्मेसी को प्राथमिकता दे रहे हैं। लेकिन जैसे-जैसे यह सुविधा बढ़ रही है, वैसे-वैसे इसमें खामियों और खतरों की आशंका भी सामने आ रही है।

ई-फार्मेसी की सकारात्मक संभावनाएं

सरकार की चिंता के बावजूद, ई-फार्मेसी मॉडल पूरी तरह से दोषी नहीं कहा जा सकता। यदि इस क्षेत्र को एक व्यवस्थित रूप में विकसित किया जाए और कंपनियों को निश्चित मानकों के अधीन संचालित होने के लिए बाध्य किया जाए, तो यह भारत की स्वास्थ्य सेवाओं को आधुनिक और सुलभ बना सकता है।

डिजिटल फार्मेसी की मदद से दूरदराज के क्षेत्रों में भी गुणवत्तापूर्ण दवाएं पहुंचाई जा सकती हैं, जहां पारंपरिक मेडिकल स्टोर कम हैं या मौजूद ही नहीं हैं। इसके अलावा, डिजिटल रिकॉर्ड, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से प्रिस्क्रिप्शन की जांच, और ऑटोमेटेड स्टॉक मैनेजमेंट जैसी तकनीकें स्वास्थ्य सेवाओं को प्रभावशाली बना सकती हैं।

कंपनियों को जवाबदेह बनाने की जरूरत

सरकार का अगला कदम यह होगा कि वह सभी ई-फार्मेसी प्लेटफॉर्म्स के लिए एकल रजिस्ट्रेशन प्रणाली लाए, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि केवल लाइसेंस प्राप्त कंपनियां ही दवाओं की बिक्री कर सकें। इसके साथ ही एक केंद्रीकृत निगरानी प्रणाली विकसित की जाएगी, जो प्रिस्क्रिप्शन की जांच, डिलीवरी की स्थिति और मरीज की प्रतिक्रिया को ट्रैक कर सके।

सरकार उन कंपनियों पर भी नजर रखेगी जो समय की सीमा में दवा पहुंचाने की होड़ में नियमों की अनदेखी कर रही हैं। नियामक ढांचे के तहत 'क्विक डिलिवरी' की प्रक्रिया को सुरक्षित और नियंत्रित बनाना अनिवार्य होगा।

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