गाँवों की गलियों में कई कहानियाँ जन्म लेती हैं – कुछ सिखाती हैं, कुछ हँसाती हैं और कुछ हमें खुद से मिलवाती हैं। ऐसी ही एक कहानी है एक कुम्हार और उसकी गुस्सैल पत्नी की, जो न केवल उनके जीवन में बदलाव लाती है, बल्कि हर उस इंसान के लिए मिसाल बन जाती है जो अपने गुस्से से परेशान है।
एक शांत कुम्हार और उसकी उग्र पत्नी
उत्तर भारत के एक छोटे से गाँव में हर रोज़ की तरह सुबह सूरज की किरणें जब खेतों और कच्चे घरों पर पड़तीं, तब एक कुम्हार अपने चाक पर बैठकर मिट्टी को आकार देने लगता। उसका नाम था हरिया – मेहनती, ईमानदार और बेहद शांत स्वभाव का व्यक्ति। उसकी पत्नी चमेली, उसके बिल्कुल विपरीत थी – गुस्सैल, चिड़चिड़ी और बात-बात पर नाराज़ होने वाली।
हरिया ने हमेशा अपने मन को साधा था। गाँव वाले उसकी प्रशंसा करते नहीं थकते। लेकिन जैसे ही बात चमेली की होती, लोग दूरी बना लेते। चमेली के गुस्से की वजह से उनके कई रिश्तेदार, पड़ोसी और यहाँ तक कि घर की बहुएं भी उनसे कटकर रहने लगी थीं।
'मुझे खुद पर गुस्सा आता है'
एक दिन जब हरिया चाक पर घड़ा बना रहा था, चमेली तमतमाती हुई आई। बोली – 'हरिया, अब मुझसे नहीं सहा जाता। मुझे खुद पर गुस्सा आता है। पता नहीं क्यों, मैं छोटी-छोटी बातों पर फट पड़ती हूँ। आज फिर मेरी पड़ोसन से बहस हो गई, कल तुम्हारी भाभी से झगड़ा। अब तो मुझे खुद शर्म आने लगी है। कुछ करो, इस गुस्से का इलाज ढूँढो।'
हरिया ने गंभीरता से उसकी बात सुनी और बोला – 'कल सुबह हम गाँव के वैद जी के पास चलेंगे।'
वैद जी की अनोखी दवा
अगली सुबह हरिया और चमेली वैद जी के पास पहुँचे। वैद जी एक बुज़ुर्ग और बहुत ही शांत स्वभाव के व्यक्ति थे। उन्होंने चमेली की बातों को बड़े धैर्य से सुना। फिर मुस्कराते हुए बोले, 'बेटा, गुस्सा एक ऐसी बीमारी है जो हमारे मन से शुरू होती है और धीरे-धीरे हमारे रिश्तों को तोड़ देती है। इसका इलाज है, लेकिन वह आम दवाओं की तरह नहीं, थोड़ा अलग तरीका है।'
फिर वैद जी अंदर गए और एक कपड़े में लिपटी कुछ छोटी-छोटी गोलियाँ लेकर लौटे। उन्होंने कहा, 'जब भी तुम्हें गुस्सा आए, एक गोली निकालकर मुँह में रख लेना। ध्यान रखना, उसे चबाना नहीं है, बस धीरे-धीरे चूसते रहना है। जब तक गोली खत्म न हो जाए, तब तक कुछ मत बोलना। इससे तुम्हारा गुस्सा भी उतर जाएगा और बात बिगड़ने से बच जाएगी।'
मिठास की चमत्कारी ताकत
चमेली ने उनकी बात मान ली। अब जब भी उसे गुस्सा आता, वह वैद की दी गई मीठी गोली मुँह में रख लेती और धीरे-धीरे चूसती। इस दौरान उसका ध्यान गुस्से से हट जाता और जब तक वह कुछ बोलती, उसका क्रोध शीतल हो जाता।
एक हफ्ते में ही परिवर्तन दिखाई देने लगा। चमेली अब पहले की तरह चिल्लाती नहीं थी, झगड़े की जगह मुस्कुरा देती, और उसकी आवाज़ में कड़वाहट की जगह मिठास आ गई थी। पड़ोसी भी आश्चर्य करने लगे – 'कहीं यह चमेली की जुड़वाँ बहन तो नहीं?'
सच्चाई का खुलासा
हफ्ते भर बाद हरिया और चमेली दोबारा वैद जी के पास पहुंचे। चमेली बेहद भावुक हो गई और वैद जी के चरणों में गिरकर बोली, 'आपकी दी हुई दवा ने मेरी ज़िंदगी बदल दी है। अब मेरा स्वभाव पहले जैसा नहीं रहा। कई रिश्ते जो टूटने के कगार पर थे, अब बच गए हैं।'
वैद जी मुस्कराए और बोले, 'बेटी, अब समय आ गया है कि मैं तुम्हें एक सच्चाई बताऊं। जो दवा मैंने दी थी, वो असल में कोई दवा नहीं थी। वो तो बस गुड़ और मिश्री की मीठी गोलियाँ थीं। उनका असर किसी दवा जैसा नहीं, बल्कि तुम्हारे खुद के व्यवहार पर था।'
फिर वैद जी ने प्यार से समझाया, 'जब भी तुमने वह गोली मुँह में रखी, तुमने बोलने से खुद को रोका। उस समय तुमने अपने गुस्से पर नियंत्रण किया, और यही तुम्हारा असली इलाज था। आत्मनियंत्रण ही वह शक्ति है जो गुस्से को भी शांत कर सकती है।'
जीवन में आई नई सुबह
उस दिन के बाद चमेली ने खुद को बदलना शुरू किया। वह हर बार बोलने से पहले सोचती, और यदि गुस्सा आता, तो खुद को कुछ पल शांत रखती। अब वह किचन में भुनभुनाने के बजाय गुनगुनाती थी। घर का माहौल हल्का, हँसमुख और प्रेमपूर्ण हो गया।
गाँव में जब कोई अपने गुस्से से परेशान होता, तो लोग कहते – 'एक बार चमेली से जाकर बात कर ले, वह तुझे सिखा देगी गुस्से को कैसे चूसकर शांति में बदला जाता है!'
नैतिक संदेश
गुस्सा एक ऐसी आग है जो पहले खुद को जलाती है, फिर दूसरों को। लेकिन अगर हम उस आग के धुएँ को साँसों से बाहर नहीं निकालते, तो वह भीतर ही शांत हो जाती है। खुद पर संयम, समय पर मौन और एक मीठा भाव – यही है असली उपचार।