ईरान-इज़रायल तनाव और उसमें अमेरिका की भागीदारी के चलते कच्चे तेल (क्रूड ऑयल) की कीमतों में तेज उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है, जिसका सीधा असर भारत जैसे आयात-निर्भर देशों की अर्थव्यवस्था और शेयर बाजार पर पड़ता है।
23 जून 2025 को भारतीय और वैश्विक वित्तीय बाजारों के लिए सोमवार की सुबह तनाव और अनिश्चितता लेकर आई। ईरान और इजरायल के बीच पहले से ही चल रही गहमागहमी अब और अधिक विस्फोटक हो गई है, जब अमेरिका ने खुलकर इस संघर्ष में हस्तक्षेप किया। वेस्ट एशिया में अमेरिकी बमबारी और ईरान की चेतावनियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अस्थिरता को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है। इसका सीधा असर तेल की कीमतों, वैश्विक बाजार और निवेशकों की रणनीतियों पर पड़ता दिखाई दे रहा है।
युद्ध के मुहाने पर खड़ा वेस्ट एशिया
मध्य पूर्व यानी वेस्ट एशिया हमेशा से ही भू-राजनीतिक तनावों का केंद्र रहा है। लेकिन अब अमेरिका द्वारा ईरान के खिलाफ की गई सैन्य कार्रवाई ने हालात को और भी गंभीर बना दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने साफ कर दिया है कि अगर ईरान जवाबी कदम उठाता है, तो अमेरिका और अधिक तीखे सैन्य हमले करेगा। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि संघर्ष केवल इजरायल और ईरान तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि अब यह एक अंतरराष्ट्रीय संकट का रूप ले चुका है।
शेयर बाजार पर भारी असर
इस भू-राजनीतिक संकट का पहला असर भारतीय शेयर बाजार पर साफ दिखाई दिया। सोमवार 23 जून को जैसे ही बाजार खुले, सेंसेक्स और निफ्टी दोनों ही गिरावट के साथ खुले। शुरुआती कारोबार में सेंसेक्स करीब 700 अंक तक लुढ़का, जबकि निफ्टी 180 अंकों से अधिक गिरकर 25 हजार के नीचे चला गया।
पिछले सप्ताह मिडिल ईस्ट में बढ़ते तनाव के बावजूद भारतीय शेयर बाजार में सकारात्मक रुझान देखने को मिला था, और सेंसेक्स-निफ्टी में करीब डेढ़ फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। लेकिन अमेरिका की कार्रवाई के बाद अब निवेशकों में घबराहट दिख रही है, और वे सतर्क होकर कदम उठा रहे हैं।
क्रूड ऑयल की कीमतें बनीं नई चुनौती
इस पूरे घटनाक्रम का सबसे गंभीर आर्थिक पहलू क्रूड ऑयल की कीमतों में तेजी है। इस समय कच्चे तेल का दाम 76 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच चुका है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ईरान ने होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद कर दिया, तो यह कीमत 130 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती है।
होर्मुज जलडमरूमध्य दुनिया के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग है, जिससे करीब 20 प्रतिशत वैश्विक तेल आपूर्ति होती है। इस मार्ग का बाधित होना न केवल तेल के दाम बढ़ाएगा, बल्कि वैश्विक व्यापार और शिपिंग इंडस्ट्री को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
निवेशकों की रणनीति में बदलाव
इस समय निवेशक सुरक्षित विकल्पों की तलाश में हैं। भू-राजनीतिक तनाव बढ़ने पर आमतौर पर निवेशक सोने और अमेरिकी डॉलर जैसे सुरक्षित परिसंपत्तियों की ओर रुख करते हैं। यही कारण है कि इन दोनों में तेजी देखी जा रही है।
विशेषज्ञों की राय है कि निवेशकों को फिलहाल क्रूड ऑयल के ट्रेंड पर करीबी नजर रखनी चाहिए और उसी आधार पर अपनी पोर्टफोलियो रणनीति तैयार करनी चाहिए। अगर तनाव और बढ़ता है तो यह निवेश की दिशा को पूरी तरह बदल सकता है।
महंगाई पर बढ़ सकता है दबाव
तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से भारत जैसे आयात-निर्भर देशों की अर्थव्यवस्था पर दोहरा असर पड़ता है। एक ओर व्यापार घाटा बढ़ता है और दूसरी ओर महंगाई का दबाव भी बढ़ने लगता है। यह स्थिति भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति के प्रयासों को उल्टा कर सकती है।
अगर कच्चे तेल की कीमतें लंबे समय तक ऊंची बनी रहती हैं, तो इसके कारण ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट, इनपुट लागत और खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेजी आ सकती है। यह समग्र मुद्रास्फीति दर को बढ़ा सकता है, जो कि पहले से ही आरबीआई की निगरानी में है।
अमेरिका की रणनीति और वैश्विक संकेत
विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका का यह हस्तक्षेप सिर्फ सैन्य नहीं, बल्कि रणनीतिक भी है। वेस्ट एशिया में अपनी पकड़ मजबूत करने और वैश्विक ऊर्जा बाजार पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए अमेरिका द्वारा लिया गया यह कदम आने वाले समय में और व्यापक असर डाल सकता है।
इसका असर न केवल भारत जैसे उभरते बाजारों पर होगा, बल्कि यूरोप, चीन और दक्षिण एशिया के देशों की ऊर्जा नीति भी प्रभावित हो सकती है। विश्व भर में निवेशकों की रणनीतियां अब इस तनाव के आधार पर ही बनेंगी।
भारत के लिए चुनौतियां और विकल्प
भारत की ऊर्जा जरूरतों का बड़ा हिस्सा आयात से पूरा होता है। ऐसे में तेल की कीमतों में बढ़ोतरी सीधे तौर पर राजकोषीय घाटे और करेंट अकाउंट डेफिसिट पर असर डाल सकती है। इसके अलावा रुपए की कमजोरी से आयात और महंगा हो जाएगा, जिससे घरेलू बाजार में महंगाई और बढ़ेगी।
सरकार के सामने अब दोहरी चुनौती है। एक तरफ तेल की कीमतों को नियंत्रित रखना और दूसरी तरफ उपभोक्ताओं को महंगाई से राहत देना। ऐसे में पेट्रोलियम सब्सिडी को लेकर भी सरकार को रणनीतिक निर्णय लेने पड़ सकते हैं।