आज के समय में महिलाओं में यूरिक एसिड की समस्या तेजी से बढ़ रही है। अक्सर यह माना जाता है कि यह समस्या केवल पुरुषों को होती है, लेकिन शोध बताते हैं कि महिलाओं में भी यह समस्या काफी सामान्य हो चुकी है। खासतौर पर जोड़ों और एड़ियों में दर्द, सूजन, चलने-फिरने में परेशानी जैसी शिकायतें यूरिक एसिड के बढ़ने की ओर इशारा कर सकती हैं। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि महिलाओं में यूरिक एसिड क्यों बढ़ता है, इसके कारण क्या हैं, और इसे कैसे नियंत्रित किया जा सकता है।
यूरिक एसिड क्या होता है
यूरिक एसिड एक प्रकार का रसायन है जो शरीर में प्यूरिन नामक पदार्थ के टूटने से बनता है। प्यूरिन मुख्य रूप से प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थों में पाया जाता है, जैसे कि मांस, मछली, दालें आदि। जब शरीर इन पदार्थों को पचाता है तो यूरिक एसिड बनता है। सामान्य स्थिति में यह यूरिक एसिड रक्त के जरिए गुर्दे तक पहुंचता है और पेशाब के माध्यम से शरीर से बाहर निकल जाता है। लेकिन जब यूरिक एसिड अधिक बनने लगे या बाहर निकलने में बाधा आए तो यह रक्त में जमा हो जाता है और जोड़ों में क्रिस्टल बनाकर गठिया (गाउट) जैसी समस्याएं पैदा करता है।
महिलाओं में यूरिक एसिड की समस्या क्यों ज्यादा होती है?
पुरुषों की तुलना में महिलाओं में यूरिक एसिड की समस्या अधिक होने के पीछे कई वजहें हैं, जिनमें हार्मोनल बदलाव, पाचन क्रिया और जीवनशैली मुख्य हैं।
1. हार्मोनल बदलाव का असर
महिलाओं में सेक्स हार्मोन खासतौर पर एस्ट्रोजेन यूरिक एसिड के स्तर को नियंत्रित रखने में अहम भूमिका निभाता है। एस्ट्रोजेन यूरिक एसिड को शरीर से बाहर निकालने में मदद करता है। परन्तु, महिलाओं में खासकर पीरियड्स के दौरान या मेनोपॉज के बाद इस हार्मोन का स्तर घटने लगता है, जिससे यूरिक एसिड का स्तर बढ़ जाता है।
- पीरियड्स के दौरान हार्मोनल असंतुलन के कारण यूरिक एसिड की समस्या बढ़ सकती है।
- मेनोपॉज के बाद एस्ट्रोजेन की कमी से यूरिक एसिड के स्तर में वृद्धि होती है, जो महिलाओं को गठिया जैसी बीमारियों के लिए अधिक संवेदनशील बनाता है।
2. खराब पाचन क्रिया और मेटाबॉलिज्म
महिलाओं में पाचन संबंधी समस्याएं अधिक होती हैं, जिससे शरीर प्रोटीन और प्यूरिन को सही तरीके से पचा नहीं पाता। मेटाबोलिक सिंड्रोम, डायबिटीज, लीवर और किडनी से जुड़ी बीमारियां भी यूरिक एसिड के स्तर को प्रभावित करती हैं। जब पाचन तंत्र कमजोर होता है, तो यूरिक एसिड शरीर में जमा होने लगता है।
3. व्रत और अनियमित भोजन
भारत में महिलाओं द्वारा अधिक व्रत रखने या पूजा-पाठ के दौरान खाने-पीने की आदतों में बदलाव आता है। इससे शरीर की मेटाबोलिज्म पर असर पड़ता है और डाइजेस्टिव एंजाइम्स कम बनने लगते हैं। इन एंजाइम्स की कमी के कारण प्रोटीन पचाने की प्रक्रिया प्रभावित होती है, जिससे यूरिक एसिड का स्तर बढ़ जाता है।
यूरिक एसिड का सामान्य स्तर
महिलाओं में यूरिक एसिड का सामान्य स्तर 2.4 से 6.0 mg/dL माना जाता है। यदि यह स्तर इससे अधिक हो जाए तो इसे हाइपरयूरिसीमिया कहा जाता है, जो गठिया और जोड़ों के दर्द का प्रमुख कारण बन सकता है।
यदि आपको जोड़ों में बार-बार दर्द, सूजन या चलने-फिरने में तकलीफ हो रही है तो यह यूरिक एसिड की बढ़ती समस्या का संकेत हो सकता है। ऐसे में समय रहते ब्लड टेस्ट कराना और डॉक्टर की सलाह लेना आवश्यक है।
महिलाओं के लिए यूरिक एसिड बढ़ने के मुख्य कारण
- हार्मोनल असंतुलन: एस्ट्रोजेन की कमी से यूरिक एसिड बढ़ता है।
- पाचन तंत्र की कमजोरी: खराब पाचन के कारण शरीर प्यूरिन को ठीक से नहीं तोड़ पाता।
- जीवनशैली में बदलाव: अनियमित खानपान, व्रत या उपवास से मेटाबोलिज्म प्रभावित होता है।
- पुरानी बीमारियां: डायबिटीज, लीवर रोग, किडनी की समस्या यूरिक एसिड बढ़ाने में सहायक।
- तनाव और मानसिक दबाव: स्ट्रेस से शरीर में हार्मोनल बदलाव होते हैं जो यूरिक एसिड को प्रभावित करते हैं।
यूरिक एसिड के बढ़ने पर क्या करें?
- संतुलित आहार लें: ज्यादा प्रोटीनयुक्त भोजन, रेड मीट, शराब, और फ्राइड फूड से बचें। ताजे फल, सब्जियां, और हरी पत्तेदार सब्जियां ज्यादा खाएं।
- पर्याप्त पानी पिएं: कम से कम 2-3 लीटर पानी पिएं ताकि यूरिक एसिड पेशाब के जरिए बाहर निकल सके।
- नियमित व्यायाम करें: योग, चलना और हल्की एक्सरसाइज मेटाबोलिज्म को बेहतर बनाती है।
- डॉक्टर से सलाह लें: यूरिक एसिड के स्तर के लिए ब्लड टेस्ट कराएं और डॉक्टर के निर्देशानुसार दवाएं लें।
- व्रत के दौरान सावधानी रखें: लंबे समय तक भूखे न रहें, छोटे-छोटे भोजन करें।
महिलाएं अक्सर जोड़ों और एड़ियों के दर्द को उम्र बढ़ने या थकान की वजह से जोड़ देती हैं, लेकिन यह यूरिक एसिड बढ़ने का संकेत हो सकता है। हार्मोनल बदलाव, पाचन समस्या और जीवनशैली की गलत आदतें महिलाओं में यूरिक एसिड की समस्या को बढ़ावा देती हैं। इसलिए इस समस्या को नजरअंदाज न करें और समय-समय पर स्वास्थ्य जांच करवाते रहें। संतुलित आहार और नियमित जीवनशैली अपनाकर इस समस्या से काफी हद तक बचा जा सकता है।