पंकज त्रिपाठी ने कहा कि अगर OTT प्लेटफॉर्म न होता, तो उनका अभिनय लोगों तक नहीं पहुंच पाता। डिजिटल माध्यम ने उनके जैसे गहराई से अभिनय करने वाले कलाकारों को वो मंच दिया, जिसकी उन्हें लंबे समय से तलाश थी।
Pankaj Tripatji: बॉलीवुड में आज अगर किसी अभिनेता का नाम सादगी, अभिनय की गहराई और ज़मीन से जुड़ी कहानियों के लिए सबसे पहले लिया जाता है, तो वह हैं पंकज त्रिपाठी। अपनी बेबाक राय और स्वाभाविक अभिनय के लिए मशहूर पंकज, अब केवल एक अभिनेता नहीं बल्कि नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा बन चुके हैं। लेकिन इस सफलता की कहानी के पीछे 9-10 साल का लंबा संघर्ष छुपा है। हाल ही में एक इंटरव्यू में पंकज त्रिपाठी ने बताया कि कैसे OTT प्लेटफॉर्म उनके लिए संजीवनी बनकर आया, वरना वे आम दर्शकों की समझ में भी नहीं आते।
OTT ने दिलाई असली पहचान
पंकज त्रिपाठी मानते हैं कि उनके अभिनय को पहचान OTT प्लेटफॉर्म्स की वजह से ही मिली। चाहे वो मिर्जापुर का ‘कालीन भैया’ हो या क्रिमिनल जस्टिस का ईमानदार वकील, इन किरदारों ने उन्हें देशभर में लोकप्रिय बना दिया।
वे कहते हैं, 'मैं OTT का शुरुआती अभिनेता रहा हूं। जब सोशल मीडिया और मोबाइल फोन हर हाथ में आया, तो लोगों ने मेरी एक्टिंग को नोटिस करना शुरू किया। फिर मीडिया ने मुझे खोजा। वरना जो मैं करता हूं, वो अभिनय पारंपरिक नज़रिया रखने वाले दर्शकों की समझ में नहीं आता। मैं इमोशन्स को बहुत लाउड नहीं दिखाता, जैसा इरफान खान करते थे। इसलिए हमें देर से समझा गया।'
कला की तुलना नहीं हो सकती
वर्ल्ड सिनेमा और भारतीय सिनेमा की तुलना पर पंकज त्रिपाठी का नजरिया बेहद साफ है। उनका कहना है कि भारत की कहानियां, समाज और संस्कृति अलग है, इसलिए तुलना करना ही गलत है।
'हमारे सिनेमा का जन्म गानों के साथ हुआ, क्योंकि हमारी संस्कृति में हर भाव में संगीत है। शादी, मुंडन, फसल कटाई – हर मौके पर हमारे यहां गाया जाता है। ऐसे में सिनेमा में गाने होना स्वाभाविक है। वहीं वेस्टर्न सिनेमा में रियलिज्म अलग है। इसलिए ग्लोबल अवॉर्ड या तुलना से किसी कला की गुणवत्ता नहीं आंकी जानी चाहिए।'
क्यों कमजोर हो गईं हमारी कहानियां?
पंकज त्रिपाठी का मानना है कि एक वक्त था जब साहित्य और सिनेमा का गहरा रिश्ता था। फणीश्वरनाथ रेणु की कहानियों पर फिल्में बनीं, लेकिन फिर वो कड़ी टूट गई।
'अब फिल्ममेकर हिंदी साहित्य पढ़ते ही नहीं हैं। जो पढ़ेगा नहीं, वो जड़ें कैसे पहचान पाएगा? लेकिन अब OTT के ज़रिए फिर बदलाव आ रहा है। जैसे पंचायत एक बेहतरीन उदाहरण है जो पूरी तरह रूटेड है। कई लेखक अब साहित्य, समाज और क्षेत्रीय पृष्ठभूमि से आ रहे हैं, इसलिए कंटेंट में गहराई दिख रही है।'
NSD ने खोला कला का नया दरवाज़ा
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) से पढ़े पंकज त्रिपाठी बताते हैं कि वहां जाकर उन्हें कला और जीवन के संबंध को समझने का मौका मिला। उन्होंने एक किस्सा साझा किया, 'हमसे कहा गया कि अपनी खुद की विंडो इमेज बनाओ। हम तीन लोग मिलकर एक खिड़की का दृश्य बनाते थे, मगर हमारी टीचर अनुराधा मैम बार-बार उसे बदलवाती थीं। एक दिन हमने खिड़की पर लटकते आईने पर बिंदी चिपका दी – तब जाकर मंजूरी मिली। वहां से मैंने जाना कि ‘खूबसूरत लड़की खिड़की पर’ जैसी चीज़ें आम हैं, असली कला कुछ नया ढूंढना है।'
न्याय और ‘क्रिमिनल जस्टिस'
पंकज त्रिपाठी की वेब सीरीज़ क्रिमिनल जस्टिस में वे एक ईमानदार वकील की भूमिका में हैं। वे मानते हैं कि भारतीय न्याय प्रणाली जटिल है और उसकी चुनौतियां बहुत बड़ी हैं।
'हमारी जनसंख्या, लंबित मुकदमे और संसाधनों की कमी – ये सब मिलकर न्याय में देरी का कारण बनते हैं। लेकिन हमारी व्यवस्था कहती है कि भले दोषी छूट जाए, लेकिन निर्दोष को सज़ा नहीं मिलनी चाहिए। इसलिए हम हर कदम पर सावधानी बरतते हैं।'
8 घंटे की शिफ्ट क्यों ज़रूरी?
इन दिनों फिल्म इंडस्ट्री में 8 घंटे की शिफ्ट को लेकर बहस चल रही है। इस पर पंकज त्रिपाठी ने कहा, 'ग्लोबली यह फॉर्मूला अपनाया गया है – 8 घंटे काम, 8 घंटे नींद और 8 घंटे पारिवारिक जीवन। मगर हमारी इंडस्ट्री में 12 घंटे की शिफ्ट आम बात है। मैंने खुद महसूस किया है कि जब मेरी नींद पूरी नहीं होती, तो अभिनय पर असर पड़ता है। अभिनेता ही एकमात्र ऐसा व्यक्ति होता है, जो इमोशनल लेबर करता है। ऐसे में उसका आराम सबसे ज़रूरी है।'