भारत की कई प्रमुख कंपनियां चीन से रेयर अर्थ मैग्नेट्स की खरीदारी के लिए लाइसेंस का इंतजार कर रही हैं, जो चीन के वाणिज्य मंत्रालय से अनिवार्य रूप से प्राप्त करना होता है।
नई दिल्ली: भारत की दिग्गज ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रिक उपकरण बनाने वाली कंपनियों को इन दिनों चीन की एक मंजूरी का इंतजार है। मामला है रेयर-अर्थ मैग्नेट्स के आयात से जुड़ा, जिनका उपयोग उच्च तकनीक वाली इलेक्ट्रिक मोटर्स और ऑटोमोबाइल कंपोनेंट्स में होता है। चीन ने अप्रैल 2024 में रेयर-अर्थ मैग्नेट्स के निर्यात पर नई शर्तें लागू की थीं, जिससे भारतीय कंपनियों की आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित हो रही है।
टीवीएस मोटर, बॉश इंडिया, यूनो मिंडा, माले इलेक्ट्रिक ड्राइव्स इंडिया और मारेली पॉवरट्रेन इंडिया जैसी कंपनियां चीन से रेयर-अर्थ मैग्नेट्स मंगवाने के लिए लाइसेंस का इंतजार कर रही हैं। पहले यह संख्या 11 थी, जो अब बढ़कर 21 हो गई है। चिंता की बात यह है कि इन कंपनियों का स्टॉक जुलाई की शुरुआत तक खत्म हो सकता है, जिससे उत्पादन में बाधा आ सकती है।
क्यों जरूरी हैं रेयर-अर्थ मैग्नेट्स?
रेयर-अर्थ मैग्नेट्स, खासकर नीओडायमियम और समैरियम कोबाल्ट, उच्च दक्षता वाली मोटर्स और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए बेहद जरूरी होते हैं। इनका इस्तेमाल स्टीयरिंग सिस्टम, ब्रेकिंग सिस्टम, सेंसर्स, ड्राइव मोटर्स और विंड टर्बाइन्स जैसे क्षेत्रों में होता है। इन तत्वों की खनिज उपलब्धता बहुत सीमित है और चीन इनका सबसे बड़ा उत्पादक व निर्यातक देश है।
नई चीनी नीति ने बढ़ाई भारतीय कंपनियों की परेशानी
4 अप्रैल 2024 को चीन ने मीडियम और हेवी रेयर-अर्थ मैग्नेट्स के निर्यात के लिए लाइसेंस अनिवार्य कर दिया। अब चीन के वाणिज्य मंत्रालय से इजाजत मिलने के बाद ही कोई विदेशी कंपनी इनका आयात कर सकती है। इसके अलावा आयातक कंपनियों को यह प्रमाण देना जरूरी है कि इन मैग्नेट्स का इस्तेमाल हथियार या किसी खतरनाक तकनीक के निर्माण में नहीं किया जाएगा।
यही नियम अब भारत की कंपनियों के गले की फांस बन गया है। लगभग सभी कंपनियों ने चीन के सप्लायर्स को जरूरी दस्तावेज भेज दिए हैं, लेकिन अब तक किसी को लाइसेंस नहीं मिला है।
प्रमुख कंपनियां जो लाइन में हैं
इस समय चीन की मंजूरी का इंतजार कर रहीं भारतीय कंपनियों में कई नामचीन ब्रांड शामिल हैं:
- टीवीएस मोटर
- बॉश इंडिया
- माले इलेक्ट्रिक ड्राइव्स इंडिया
- मारेली पॉवरट्रेन इंडिया
- यूनो मिंडा
- सोना कॉमस्टार
गौरतलब है कि सोना कॉमस्टार का पहला आवेदन दस्तावेजों में कमी के कारण खारिज कर दिया गया था। अब कंपनी ने दोबारा आवेदन किया है और वह भी बाकी कंपनियों की तरह चीन की स्वीकृति का इंतजार कर रही है।
आपूर्ति बाधित होने का खतरा
उद्योग सूत्रों की मानें तो अगर जुलाई के पहले सप्ताह तक लाइसेंस जारी नहीं हुआ, तो इन कंपनियों की उत्पादन प्रक्रिया पर असर पड़ेगा। इससे इलेक्ट्रिक वाहनों और ऑटोमोटिव उपकरणों की सप्लाई में देरी हो सकती है। साथ ही, इससे घरेलू मार्केट में वाहन उत्पादन और डिलीवरी पर भी सीधा असर पड़ने की आशंका है।
सरकार की कूटनीतिक कोशिशें जारी, लेकिन परिणाम अधूरे
भारत सरकार इस संकट को लेकर चीन के अधिकारियों से संवाद कर रही है। हालांकि अब तक कोई स्पष्ट समाधान नहीं निकला है। एक ओर जहां यूरोपीय कंपनियों को चीन से लाइसेंस मिल गया है, वहीं भारत में मौजूद उनकी शाखाओं को अभी तक अनुमति नहीं दी गई है। इससे भारतीय उद्योग जगत में निराशा का माहौल है।
भारत की आयात निर्भरता और खर्च
सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) के अनुसार, भारत की कुल 52 कंपनियां चीन से रेयर-अर्थ मैग्नेट्स का आयात करती हैं। वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने कुल 870 टन रेयर-अर्थ मैग्नेट्स के आयात पर 306 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। यह आंकड़ा दर्शाता है कि इन दुर्लभ खनिजों के लिए भारत की निर्भरता चीन पर कितनी अधिक है।
विकल्प की तलाश और आत्मनिर्भरता की चुनौती
वर्तमान संकट ने भारत को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि वह रेयर-अर्थ खनिजों के मामले में कैसे आत्मनिर्भर बन सकता है। भारत में रेयर-अर्थ तत्वों की मौजूदगी है, लेकिन इनका दोहन तकनीकी सीमाओं और पर्यावरणीय बाधाओं के चलते सीमित है। अगर भारत को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ना है, तो उसे इन संसाधनों की खुद से आपूर्ति सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।