SEBI ने IPO लाने वाली कंपनियों के प्रमोटर्स और प्रमुख शेयरधारकों को अपने शेयर डीमैट फॉर्म में रखने का नियम अनिवार्य कर दिया है। यह कदम पारदर्शिता और सुरक्षा बढ़ाने के लिए है।
SEBI IPO: मार्केट रेगुलेटर SEBI (Securities and Exchange Board of India) ने हाल ही में एक अहम घोषणा की है, जो आईपीओ (Initial Public Offering) लाने वाली कंपनियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। SEBI ने कहा है कि अब किसी भी कंपनी के डायरेक्टर्स, प्रमोटर्स और बड़े शेयरधारकों को अपने शेयर डीमैट फॉर्म में रखने होंगे, यदि वे आईपीओ लाने की योजना बना रहे हैं। यह नया कदम सेबी द्वारा उठाया गया है ताकि शेयरों के ट्रांसफर में पारदर्शिता और सुरक्षा बढ़ाई जा सके।
क्या बदलने जा रहा है?
अब, अगर कोई कंपनी आईपीओ लाने की योजना बना रही है, तो उसके डायरेक्टर्स, प्रमोटर समूह, वरिष्ठ प्रबंधन (Senior Management), की मैनजेरियल पर्सनल (KMPs), कर्मचारी और अन्य प्रमुख शेयरधारकों को अपने शेयर डीमैट फॉर्म में रखने होंगे। यह नियम सिर्फ प्रमोटर्स तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि कंपनी के अन्य महत्वपूर्ण शेयरधारकों पर भी लागू होगा। रिपोर्ट्स के अनुसार, सेबी ने इस संबंध में एक प्रस्ताव जारी किया है, जिसे सार्वजनिक सलाह के लिए 20 मई 2025 तक रखा गया है। इस तारीख के बाद, इस पर फैसला लिया जाएगा।
SEBI का उद्देश्य क्या है?
SEBI ने यह कदम इसलिए उठाया है ताकि फिजिकल शेयरों से जुड़े जोखिमों को कम किया जा सके, जैसे कि शेयरों के ट्रांसफर में देरी, धोखाधड़ी और सेटलमेंट में गड़बड़ी की संभावना को समाप्त किया जा सके। SEBI का मानना है कि फिजिकल शेयर अभी भी बड़ी संख्या में प्री-आईपीओ शेयरधारकों के पास हैं, और यही कारण है कि लिस्टिंग के बाद भी शेयर फिजिकल रूप में बने रहते हैं, जिससे विभिन्न प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
अभी क्या नियम हैं?
अब तक, सिर्फ प्रमोटर्स को ही आईपीओ ड्राफ्ट पेपर फाइल करते वक्त अपने शेयर डीमैट फॉर्म में रखने की आवश्यकता थी। लेकिन नए प्रस्ताव के अनुसार, अब डायरेक्टर्स, सीनियर मैनेजमेंट, कर्मचारी और शेयरधारकों को भी डीमैट फॉर्म में शेयर रखने होंगे।
सेबी क्यों उठा रहा है यह कदम?
SEBI का कहना है कि इस कदम का उद्देश्य कंपनी के आईपीओ और लिस्टिंग प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी और सुरक्षित बनाना है। इससे फिजिकल शेयरों से जुड़े सभी जोखिमों को कम किया जा सकेगा और शेयरों के ट्रांसफर में कोई देरी नहीं होगी। इसके अलावा, लिस्टिंग के बाद पारदर्शिता भी सुनिश्चित होगी, जिससे निवेशकों को कोई परेशानी नहीं होगी।