BJP नेता मोहसिन रजा ने वक्फ एक्ट पर कहा कि कुछ मुस्लिम नेता वक्फ प्रॉपर्टी को अल्लाह की संपत्ति बताकर गुमराह कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में भी मामला है, केंद्र ने कहा वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं।
UP News: वक्फ (Waqf) से जुड़ा मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है, और इस बार केंद्र में हैं बीजेपी नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री मोहसिन रजा। उन्होंने मुस्लिम समुदाय के कुछ नेताओं पर वक्फ संपत्तियों को लेकर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि यह संपत्तियां अल्लाह के नाम पर नहीं, बल्कि इंसानों द्वारा दी गईं हैं और इन्हें कुछ तथाकथित मौलवियों ने अपने कब्जे में ले रखा है।
"वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं": मोहसिन रजा
मोहसिन रजा ने कहा कि वक्फ का जिक्र कुरान में नहीं है और न ही अल्लाह ने इसके बारे में कोई निर्देश दिए हैं। उनके अनुसार, वक्फ को इस्लाम की जरूरी धार्मिक प्रैक्टिस मानना गलत है। उन्होंने वक्फ संशोधन कानून (Waqf Amendment Act) का समर्थन करते हुए कहा कि इससे वक्फ संपत्तियों की सही निगरानी और पारदर्शिता सुनिश्चित होगी।
मुस्लिम धर्मगुरुओं पर गंभीर आरोप
रजा का आरोप है कि कुछ मौलवीनुमा मुस्लिम धर्मगुरु वक्फ की संपत्तियों को अपने निजी स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इन संपत्तियों से न तो समाज को लाभ मिल रहा है और न ही गरीबों की कोई मदद हो रही है। "ये लोग वक्फ को अल्लाह की देन बताकर उसे कब्जा करना चाहते हैं," उन्होंने जोड़ा।
सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला
मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच चुका है, जहाँ केंद्र सरकार के वकील ने यह स्पष्ट किया है कि वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है, बल्कि यह केवल एक दान की प्रक्रिया (Charitable Process) है। सरकार का कहना है कि वक्फ बोर्ड एक धर्मनिरपेक्ष संस्था है, जबकि मंदिर एक धार्मिक संस्था होती है। इसी आधार पर दोनों की तुलना नहीं की जा सकती।
वक्फ संपत्ति और राजनीति
मोहसिन रजा ने यह भी दावा किया कि कई मुस्लिम नेताओं के पास वक्फ की अकूत संपत्ति है। अब जब उनसे हिसाब मांगा जा रहा है, तो वे परेशान हैं और इसका विरोध कर रहे हैं। उनका आरोप है कि वक्फ संपत्तियों के नाम पर मुस्लिम समुदाय को सिर्फ गुमराह किया गया है।
विपक्ष और मुस्लिम संगठनों की नाराजगी
जहां एक तरफ बीजेपी नेता इस कानून का समर्थन कर रहे हैं, वहीं मुस्लिम संगठनों और विपक्षी दलों में इस संशोधन को लेकर भारी नाराजगी है। उनका मानना है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों में दखल है और इसे वापस लिया जाना चाहिए।