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Waqf Act 2025 पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई: कानून पर अंतरिम रोक से इनकार, आज केंद्र सरकार रखेगी अपना पक्ष

वक्फ एक्ट 2025 की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। कोर्ट ने कहा- जब तक ठोस आधार न हो, कानून पर रोक नहीं। आज केंद्र सरकार अपना पक्ष रखेगी।

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को वक्फ संशोधन कानून 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई। अदालत ने याचिकाकर्ताओं से स्पष्ट शब्दों में कहा कि किसी भी कानून को रद्द करने या उस पर रोक लगाने के लिए एक ठोस और स्पष्ट आधार होना चाहिए। जब तक कोई स्पष्ट मामला सामने न आए, तब तक अदालतें किसी कानून पर अंतरिम रोक नहीं लगातीं।

यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने उस वक्त की, जब याचिकाकर्ता कानून पर अंतरिम रोक लगाने की मांग कर रहे थे। अदालत की इस टिप्पणी के बाद यह साफ हो गया कि वक्फ एक्ट 2025 पर अभी कोई तात्कालिक राहत नहीं मिलेगी।

कपिल सिब्बल ने कानून को बताया धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी कि वक्फ एक्ट 2025 मुसलमानों के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन करता है। उन्होंने कहा कि यह कानून मुस्लिम समुदाय की धार्मिक संपत्तियों को सरकार के कब्जे में लेने की मंशा से लाया गया है।

सिब्बल ने कोर्ट से अपील की कि जब तक याचिका पर अंतिम निर्णय नहीं आ जाता, तब तक कानून के प्रावधानों को रोका जाए। उन्होंने वक्फ संपत्तियों को बिना प्रक्रिया अपनाए समाप्त करने, वक्फ बाई यूजर की मान्यता को खत्म करने और गैर मुस्लिम सदस्यों को वक्फ बोर्ड में शामिल करने जैसे मुद्दों को उठाया।

केंद्र सरकार की दलील: वक्फ धर्मनिरपेक्ष संस्था है

वहीं, केंद्र सरकार ने कानून का बचाव करते हुए कहा कि वक्फ का स्वरूप धर्मनिरपेक्ष है और यह कानून किसी समुदाय के खिलाफ नहीं है। केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वक्फ संपत्तियों की निगरानी और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए ही यह संशोधन किया गया है।

उन्होंने कोर्ट से आग्रह किया कि सुनवाई को तीन मुख्य मुद्दों तक सीमित रखा जाए, जिन पर केंद्र सरकार ने अपना जवाब दाखिल किया है। हालांकि याचिकाकर्ताओं ने इसका विरोध किया और कहा कि सुनवाई संपूर्ण कानून के सभी पहलुओं पर होनी चाहिए।

अदालत के सवाल: क्या वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण पहले से जरूरी था?

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने याचिकाकर्ताओं से कई सवाल पूछे। मुख्य सवाल यह था कि क्या वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण पहले के कानून में भी अनिवार्य था? और अगर नहीं किया गया, तो क्या उस संपत्ति की वक्फ पहचान समाप्त हो जाती है?

इस पर सिब्बल ने कहा कि पहले के कानून में मुतवल्ली की जिम्मेदारी थी कि वह वक्फ संपत्ति को पंजीकृत कराए, लेकिन अगर ऐसा नहीं होता था, तो वक्फ की वैधता खत्म नहीं होती थी। नया कानून कहता है कि अगर वक्फ पंजीकृत नहीं है और वक्फ करने वाले का नाम-पता नहीं है, तो वह संपत्ति वक्फ नहीं मानी जाएगी। यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

तीन मुख्य मुद्दे जिन पर केंद्र ने बहस सीमित रखने को कहा

  1. वक्फ संपत्तियों को डिनोटिफाई करने की शक्ति: अदालतों द्वारा वक्फ घोषित संपत्तियों को हटाने का अधिकार किसके पास होना चाहिए?
  2. वक्फ बोर्ड और वक्फ परिषद की संरचना: क्या गैर मुस्लिम सदस्य इन संस्थाओं में शामिल हो सकते हैं?
  3. राजस्व अधिकारियों द्वारा वक्फ संपत्ति को सरकारी भूमि घोषित करना: क्या कलेक्टर को यह अधिकार होना चाहिए?

केंद्र सरकार ने इन तीन बिंदुओं पर ही बहस को केंद्रित करने की बात की, लेकिन याचिकाकर्ता इससे सहमत नहीं थे।

अन्य वरिष्ठ वकीलों की दलीलें

कपिल सिब्बल के अलावा याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी, सीयू सिंह, राजीव धवन और हुजैफा अहमदी ने भी अपने-अपने तर्क प्रस्तुत किए। सभी वकीलों की मुख्य मांग यह थी कि जब तक याचिका पर अंतिम फैसला नहीं आ जाता, तब तक कानून के अमल पर रोक लगाई जाए।

सिंघवी ने कहा कि इस तरह की सुनवाई टुकड़ों में नहीं हो सकती और पूरी तरह से कानून की समीक्षा जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि गैर पंजीकृत वक्फ संपत्तियों को वक्फ न मानने से कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों की पहचान खत्म हो सकती है।

खजुराहो का उदाहरण और प्राचीन स्मारक विवाद

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस बीआर गवई ने एक दिलचस्प उदाहरण दिया। उन्होंने खजुराहो मंदिरों का ज़िक्र करते हुए कहा कि वे प्राचीन स्मारक हैं, लेकिन आज भी वहां पूजा होती है। इसका मतलब यह नहीं कि वह धार्मिक स्थल नहीं रहा। इस पर सिब्बल ने तर्क दिया कि नया कानून कहता है कि अगर कोई संपत्ति संरक्षित स्मारक घोषित हो जाए, तो उसकी वक्फ पहचान समाप्त हो जाती है। इसका मतलब है कि उस संपत्ति पर समुदाय का धार्मिक अधिकार खत्म हो जाएगा।

AIMIM और जमीयत की याचिकाएं

इस मामले में कुल पांच याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें प्रमुख रूप से AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी और जमीयत उलमा-ए-हिंद की याचिकाएं शामिल हैं। इन याचिकाओं में वक्फ एक्ट 2025 को संविधान के अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) और 26 (धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन का अधिकार) का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी गई है।

केंद्र सरकार का आश्वासन

पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार ने कोर्ट को आश्वस्त किया था कि जब तक याचिका पर अंतिम फैसला नहीं आ जाता, तब तक न ही केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति की जाएगी और न ही अधिसूचित वक्फ संपत्तियों की प्रकृति बदली जाएगी।

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