थायरॉयड एक महत्वपूर्ण ग्रंथि है जो हमारे शरीर के हार्मोन स्तर को नियंत्रित करती है। यह गर्दन के सामने, गले के नीचे तितली के आकार में स्थित होती है और शरीर के मेटाबोलिज्म, ऊर्जा स्तर और कई अन्य जैविक क्रियाओं को प्रभावित करती है। लेकिन आज के समय में थायरॉयड से जुड़ी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं, खासकर महिलाओं में। भारत में लगभग 2.9% लोग थायरॉयड विकार से प्रभावित हैं, जिनमें महिलाओं की संख्या अधिक है। इस समस्या के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 25 मई को विश्व थायरॉयड दिवस मनाया जाता है।
महिलाओं को थायरॉयड ज्यादा क्यों होता है?
थायरॉयड ग्रंथि की कार्यप्रणाली शरीर में मौजूद कई हार्मोन के साथ जुड़ी होती है, जिसमें एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे महिला हार्मोन्स प्रमुख हैं। ये हार्मोन्स महिलाओं के शरीर में मासिक धर्म, गर्भावस्था और मेनोपॉज के दौरान तेजी से घटते-बढ़ते रहते हैं।
यही हार्मोनल असंतुलन अक्सर थायरॉयड ग्रंथि की गतिविधियों को प्रभावित करता है और महिलाओं में थायरॉयड डिसऑर्डर का खतरा बढ़ा देता है। विशेष रूप से गर्भावस्था के बाद पोस्टपार्टम थायरॉयडाइटिस एक सामान्य स्थिति है, जिसमें महिला के थायरॉयड हार्मोन स्तर में असामान्यता आ जाती है।
थायरॉयड के प्रकार और उनके लक्षण
हाइपोथायरॉयडिज्म: इस स्थिति में थायरॉयड ग्रंथि पर्याप्त मात्रा में हार्मोन नहीं बना पाती। इससे शरीर की ऊर्जा धीरे-धीरे कम होती जाती है और हर काम धीमा लगने लगता है। यह समस्या धीरे-धीरे बढ़ती है, इसलिए शुरुआत में कई लोग इसे नजरअंदाज कर देते हैं।
मुख्य लक्षण:
- लगातार थकान और कमजोरी
- वजन तेजी से बढ़ना
- ठंड अधिक लगना
- त्वचा और बालों में रूखापन
- अवसाद और चिड़चिड़ापन
- मासिक धर्म की अनियमितता
- मांसपेशियों व जोड़ों में दर्द
- दिल की धड़कन धीमी होना
हाइपरथायरॉयडिज्म: इस स्थिति में थायरॉयड ग्रंथि जरूरत से ज्यादा हार्मोन बनाती है। इससे शरीर के काम बहुत तेज़ी से होने लगते हैं और व्यक्ति को बहुत घबराहट या बेचैनी महसूस होती है।
मुख्य लक्षण:
- वजन का तेजी से घटना
- अत्यधिक पसीना आना
- बेचैनी और घबराहट
- तेज हृदयगति
- नींद न आना
- गर्मी महसूस होना
- मासिक धर्म में अनियमितता
- बालों का झड़ना और पतला होना
- हाथ कांपना
थायरॉयड के अन्य कारण
थायरॉयड की समस्या महिलाओं में ज्यादा देखी जाती है, लेकिन इसका कारण सिर्फ हार्मोनल बदलाव नहीं है। इसके पीछे कई और वजहें भी हो सकती हैं, जिन्हें जानना और समझना जरूरी है।
ऑटोइम्यून बीमारियां: कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं जिनमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) खुद ही थायरॉयड ग्रंथि पर हमला करने लगती है। जैसे– हाशिमोटो थायरॉयडाइटिस (जिसमें हाइपो थायरॉयडिज्म होता है) और ग्रेव्स डिजीज (जो हाइपर थायरॉयडिज्म का कारण बनती है)। ये बीमारियां थायरॉयड की कार्यप्रणाली को गड़बड़ा देती हैं।
अनुवांशिकता (जनेटिक कारण): अगर परिवार में किसी को थायरॉयड की समस्या रही है, तो अगली पीढ़ी को भी इसका खतरा हो सकता है। यानी अगर आपकी माँ, बहन या किसी करीबी रिश्तेदार को थायरॉयड है, तो आपको भी यह हो सकता है।
अत्यधिक तनाव और चिंता: लगातार मानसिक तनाव और चिंता का सीधा असर हमारे हार्मोन संतुलन पर पड़ता है। जब व्यक्ति लंबे समय तक स्ट्रेस में रहता है, तो शरीर की थायरॉयड ग्रंथि पर असर पड़ सकता है और थायरॉयड हार्मोन का स्राव बिगड़ सकता है।
आयोडीन की कमी या अधिकता: थायरॉयड ग्रंथि को सही तरीके से काम करने के लिए आयोडीन की जरूरत होती है। अगर आयोडीन की मात्रा शरीर में बहुत कम या बहुत ज्यादा हो जाए, तो थायरॉयड से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। खासकर भारत के कुछ ग्रामीण इलाकों में अभी भी आयोडीन की कमी एक आम समस्या है।
गलत खानपान और फिजिकल एक्टिविटी की कमी: फास्ट फूड, अधिक तला-भुना खाना, पोषक तत्वों की कमी और दिनभर बैठे रहने की आदत भी थायरॉयड को प्रभावित करती है। अगर शरीर को जरूरी पोषण और व्यायाम नहीं मिलता, तो हार्मोन बैलेंस गड़बड़ा सकता है।
कैसे करें बचाव?
थायरॉयड से बचाव पूरी तरह से तो संभव नहीं है, लेकिन कुछ सावधानियों और सही लाइफस्टाइल के जरिए इसे कंट्रोल में रखा जा सकता है:
नियमित जांच कराएं: अगर थकान, वजन में अचानक बदलाव, गले में सूजन जैसे लक्षण महसूस हों तो डॉक्टर से मिलें और थायरॉयड टेस्ट कराएं।
संतुलित और पौष्टिक आहार लें: थायरॉयड के लिए आयोडीन, जिंक, सेलेनियम और विटामिन बी12 बेहद जरूरी होते हैं। समुद्री नमक, दही, दूध, अंडा, साबुत अनाज, हरी सब्जियां और फल शामिल करें।
तनाव से रहें दूर: योग, मेडिटेशन और नियमित व्यायाम से तनाव को नियंत्रित करें, जिससे हार्मोनल बैलेंस बना रहे।
नींद पूरी लें: रोजाना कम से कम 7-8 घंटे की नींद लें। खराब नींद मेटाबॉलिज्म और हार्मोन पर असर डालती है।
कैफीन और जंक फूड से बचें: थायरॉयड मरीजों को कैफीन, फास्ट फूड और अत्यधिक शक्कर से परहेज करना चाहिए।
इलाज कैसे किया जाता है?
थायरॉयड के इलाज का तरीका उसके प्रकार और गंभीरता पर निर्भर करता है। हाइपोथायरॉयडिज्म में डॉक्टर आमतौर पर लेवोथायरॉक्सिन नाम की दवा देते हैं, जो शरीर में कम हुए हार्मोन की कमी को पूरा करती है। हाइपरथायरॉयडिज्म में हार्मोन बनने को रोकने वाली दवाओं का उपयोग किया जाता है ताकि हार्मोन का स्तर नियंत्रित रहे। अगर दवाओं से ठीक न हो, तो डॉक्टर रेडियोएक्टिव आयोडीन थेरेपी या सर्जरी की सलाह दे सकते हैं, जिसमें थायरॉयड ग्रंथि को हटाया या कम सक्रिय किया जाता है।
थायरॉयड की समस्या आज के दौर में आम हो गई है, लेकिन इसका असर पूरे शरीर पर पड़ सकता है। खासकर महिलाओं को यह समस्या ज्यादा प्रभावित करती है, इसलिए उन्हें समय-समय पर अपने हार्मोन स्तर की जांच करानी चाहिए। सही खानपान, तनाव मुक्त जीवन और डॉक्टर की सलाह के अनुसार नियमित दवा लेने से थायरॉयड को नियंत्रित रखा जा सकता है। याद रखें, जितनी जल्दी इस समस्या को पहचाना जाए, उतना ही आसान होता है इसका प्रबंधन।