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बिहार चुनाव में बाहरी वोटरों पर बीजेपी की नजर: 75 टीमें, 150 जिले और एक नया सियासी गणित

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भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने आगामी बिहार विधानसभा चुनावों के लिए कमर कस ली है। लेकिन इस बार रणनीति कुछ हटकर है। पारंपरिक जनसभाओं और रैली के अलावा पार्टी की नजर अब उन करोड़ों बिहारी वोटरों पर है, जो बिहार से बाहर रह रहे हैं, मगर अभी भी अपने मूल राज्य में वोटिंग के पात्र हैं। 

Bihar Politics: भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने बिहार विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए राज्य से बाहर रहने वाले बिहारियों को जोड़ने के लिए एक व्यापक अभियान शुरू किया है। 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' नामक इस अभियान का उद्देश्य देश के विभिन्न हिस्सों में बसे बिहार के लोगों को पार्टी से जोड़ना है, ताकि वे आगामी चुनावों में भाजपा के पक्ष में सक्रिय भूमिका निभा सकें। मार्च के महीने में पार्टी ने 'बिहार दिवस' का आयोजन किया, जो देशभर के 65 स्थानों पर बड़े पैमाने पर मनाया गया। 

इन कार्यक्रमों में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने भाग लिया और प्रवासी बिहारियों के साथ संवाद स्थापित किया। पार्टी ने पूरे देश में 150 जिलों की पहचान की है, जहां बड़ी संख्या में बिहार के लोग रहते हैं। इन जिलों में 75 टीमें तैनात की गई हैं, जिनका कार्य बिहार के मतदाताओं का डेटा एकत्र करना है।

नई सियासी चाल: बाहर के बिहारी, अंदर का वोट

बीजेपी की इस रणनीति की जड़ें उस सच्चाई में हैं जिसे अक्सर राजनीतिक विश्लेषक नजरअंदाज कर देते हैं – बिहार के करीब 2 करोड़ लोग आज भी राज्य के बाहर रहते हैं, लेकिन इनमें से करीब 1.3 करोड़ मतदाता अभी भी बिहार के वोटर लिस्ट में पंजीकृत हैं। ये लोग विभिन्न राज्यों में मजदूरी, नौकरी, व्यवसाय या पढ़ाई के कारण बसे हुए हैं, लेकिन उनका वोट बिहार की राजनीति को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकता है।

पार्टी के अनुसार, यह आंकड़ा कोई सामान्य संख्या नहीं है। लगभग 65% प्रवासी बिहारी वोटर ऐसे हैं जो समय-समय पर अपने गांव आते रहते हैं और चुनावों के दौरान घर जाकर वोट डालना उनकी आदत में शामिल है। बीजेपी का मानना है कि यदि ये वोटर संगठित और प्रेरित हों, तो वे कई सीटों पर गेमचेंजर साबित हो सकते हैं।

75 टीमें, 150 जिलों का डेटा, 'सरल' एप पर निगाह

इस अभियान के लिए पार्टी ने देशभर के 150 जिलों में 75 टीमें तैनात की हैं, जो प्रवासी बिहारी समुदाय से जुड़कर उनका विस्तृत डाटा इकट्ठा कर रही हैं। ये डेटा पार्टी के इंटरनल ऐप ‘सरल’ पर अपलोड किया जा रहा है। सरल ऐप का इस्तेमाल बीजेपी अपने माइक्रो-मैनेजमेंट और बूथ लेवल प्लानिंग के लिए करती है।

इन टीमों का काम केवल डेटा इकट्ठा करना नहीं है, बल्कि लोगों से व्यक्तिगत रूप से संवाद कर उन्हें यह समझाना भी है कि उनका वोट बिहार के भविष्य को तय करने में कितना महत्वपूर्ण है।

वोटर और सपोर्टर कैटेगरी: दोहरी रणनीति

इस पूरे अभियान को दो हिस्सों में बांटा गया है ‘वोटर’ और ‘सपोर्टर’। जो लोग बिहार में रजिस्टर्ड वोटर हैं, उन्हें सीधे संपर्क कर बिहार लौटकर वोट देने के लिए कहा जा रहा है। वहीं जो लोग बिहार से नाता तो रखते हैं, लेकिन वोटर नहीं हैं, उनसे अपील की जा रही है कि वे अपने परिवार और रिश्तेदारों को बीजेपी के पक्ष में वोट देने के लिए प्रेरित करें।

हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब और तेलंगाना जैसे राज्यों में बड़ी संख्या में बिहारी प्रवासी रहते हैं। अकेले हरियाणा में ही करीब 5 लाख बिहारी हैं। वहां बीजेपी की लोकल यूनिट इस अभियान को बेहद गंभीरता से चला रही है। हरियाणा के 14 जिलों को इस मिशन में शामिल किया गया है। यहां ‘बिहारी सम्मेलन’ जैसे आयोजनों के माध्यम से सांस्कृतिक जुड़ाव बनाकर पार्टी लोगों से संपर्क साध रही है।

कोविड काल का डेटा भी बना हथियार

BJP इस अभियान में कोविड महामारी के दौरान प्रवासी मजदूरों से इकट्ठा किए गए डेटा का भी इस्तेमाल कर रही है। बिहार सरकार ने उस वक्त बाहर फंसे मजदूरों को आर्थिक सहायता देने के लिए डेटा मांगा था। उस समय करीब 13 लाख मजदूरों ने आवेदन किया था, जिससे अब उनका संपर्क सूत्र बनाना आसान हो गया है।

मार्च महीने में बीजेपी ने बिहार दिवस को देश के 65 स्थानों पर मनाया। इन आयोजनों में न सिर्फ बिहारी प्रवासी आमंत्रित किए गए, बल्कि पार्टी के केंद्रीय नेता भी पहुंचे और व्यक्तिगत बातचीत कर यह भावनात्मक रिश्ता मजबूत करने की कोशिश की गई।

अब बड़ा सवाल ये है कि क्या यह रणनीति सिर्फ प्रचार तक सीमित रहेगी या सच में वोट में तब्दील होगी? राजनीतिक जानकारों की मानें तो अगर 1.3 करोड़ प्रवासी वोटरों का सिर्फ 20% भी संगठित होकर वोट देने बिहार पहुंचे, तो यह करीब 25 से 30 सीटों के नतीजे पलट सकता है। बीजेपी को यही उम्मीद है।

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