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भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में रिकॉर्ड बढ़ोतरी, डॉलर की बरसात

उत्तर भारत, खासकर दिल्ली-एनसीआर में जहां मानसून की बारिश का इंतजार बना हुआ है, वहीं देश की अर्थव्यवस्था पर डॉलर की बारिश हो चुकी है। 

नई दिल्ली: जहां एक ओर दिल्ली-एनसीआर में मानसून का इंतजार अब भी जारी है, वहीं देश के विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर की झमाझम बारिश ने आर्थिक मोर्चे पर राहत पहुंचाई है। जून के पहले सप्ताह में भारत के फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व में जबरदस्त बढ़ोतरी दर्ज की गई है। यह बढ़ोतरी न केवल आर्थिक स्थिरता का संकेत देती है, बल्कि भारत की वैश्विक वित्तीय स्थिति को भी मजबूत करती है। रिजर्व बैंक द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, छह जून को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार में कुल 5.17 अरब डॉलर की वृद्धि हुई है, जिससे यह आंकड़ा बढ़कर 696.656 अरब डॉलर पर पहुंच गया है।

यह वृद्धि कई कारणों से अहम मानी जा रही है। पिछले सप्ताह भंडार में गिरावट देखने को मिली थी, और ऐसे समय में यह उछाल वैश्विक निवेशकों के भारत में विश्वास का संकेत देता है। यह स्थिति देश के पूंजी बाजार, आयात-निर्यात संतुलन और रुपये की स्थिरता के लिए भी सकारात्मक है।

एफसीए में सबसे बड़ी वृद्धि

विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी का सबसे बड़ा हिस्सा विदेशी मुद्रा आस्तियों यानी फॉरेन करेंसी असेट्स (एफसीए) में हुआ है। एफसीए भारत के कुल रिजर्व का सबसे बड़ा हिस्सा होता है। छह जून को समाप्त सप्ताह में एफसीए में 3.472 अरब डॉलर की बढ़त दर्ज की गई। एक सप्ताह पहले ही इसमें लगभग 1.95 अरब डॉलर की गिरावट हुई थी, ऐसे में यह उछाल भारत के लिए काफी राहत देने वाला है।

एफसीए में डॉलर के साथ-साथ यूरो, पौंड और येन जैसी अन्य विदेशी मुद्राओं की भी हिस्सेदारी होती है। जब भारतीय रिजर्व बैंक अपनी विदेशी मुद्रा संपत्तियों को डॉलर में अभिव्यक्त करता है, तो अन्य मुद्राओं के मूल्य में हुए उतार-चढ़ाव का भी असर इस पर पड़ता है। मौजूदा बढ़ोतरी बताती है कि भारत की मुद्रा प्रबंधन नीति मजबूत बनी हुई है।

गोल्ड रिजर्व ने भी दिखाई चमक

सिर्फ एफसीए ही नहीं, भारत के गोल्ड रिजर्व यानी स्वर्ण भंडार में भी उल्लेखनीय इजाफा देखने को मिला है। छह जून को समाप्त सप्ताह में भारत के स्वर्ण भंडार में 1.583 अरब डॉलर की बढ़त हुई। इससे पहले वाले सप्ताह में भी गोल्ड रिजर्व में 723 मिलियन डॉलर की बढ़ोतरी हुई थी। अब भारत का कुल स्वर्ण भंडार बढ़कर 85.888 अरब डॉलर हो गया है।

सोने के दामों में वैश्विक बाजार में तेजी और भारत द्वारा सोने की खरीदारी में निरंतरता इसका प्रमुख कारण मानी जा रही है। भारत पारंपरिक रूप से सोने को सुरक्षित निवेश के रूप में देखता रहा है और मौजूदा वैश्विक अनिश्चितता के दौर में इसकी अहमियत और बढ़ जाती है।

एसडीआर और आईएमएफ में जमा मुद्रा भी बढ़ी

स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स यानी एसडीआर में भी बीते सप्ताह बढ़ोतरी देखने को मिली है। छह जून को समाप्त सप्ताह में इसमें 102 मिलियन डॉलर की वृद्धि हुई और अब इसका आंकड़ा बढ़कर 18.672 अरब डॉलर हो गया है। एसडीआर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा सदस्य देशों को उपलब्ध कराई जाने वाली एक विशेष संपत्ति होती है, जो विदेशी मुद्रा भंडार का एक अहम भाग है।

इसके साथ ही, आईएमएफ यानी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के पास जमा भारत के भंडार में भी बढ़ोतरी हुई है। बीते सप्ताह इसमें 14 मिलियन डॉलर की बढ़त देखी गई, जिससे कुल राशि 4.409 अरब डॉलर पर पहुंच गई है। यह बढ़ोतरी बताती है कि भारत की वैश्विक वित्तीय प्रतिबद्धताएं मजबूत हो रही हैं।

पिछले साल के आंकड़ों से तुलना

अगर हम एक वर्ष पहले के आंकड़ों से तुलना करें, तो यह स्पष्ट होता है कि भारत ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार को संभालने और बढ़ाने में अच्छी प्रगति की है। सितंबर 2024 में भारत का फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व 704.885 अरब डॉलर के उच्चतम स्तर पर पहुंचा था। हालांकि उसके बाद कुछ गिरावट आई थी, लेकिन अब यह एक बार फिर 700 अरब डॉलर के आंकड़े के करीब पहुंच गया है।

इससे यह स्पष्ट होता है कि भारत अपने आर्थिक संसाधनों का प्रबंधन कुशलता से कर रहा है। वैश्विक मंदी, अमेरिका में ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव और तेल कीमतों में अस्थिरता जैसी चुनौतियों के बावजूद भारत का रिजर्व संतुलन बनाए हुए है।

क्या होगा इसका असर

विदेशी मुद्रा भंडार में आई यह बढ़ोतरी भारत के लिए कई मायनों में सकारात्मक संकेत है। सबसे पहले, यह भारतीय रुपये की स्थिरता को मजबूत करेगी। जब फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व पर्याप्त होता है, तो भारत के पास आयात भुगतान, कर्ज अदायगी और आपात स्थितियों में विदेशी भुगतान करने की क्षमता मजबूत रहती है।

दूसरा बड़ा फायदा यह है कि वैश्विक निवेशक भारत की अर्थव्यवस्था में अधिक विश्वास दिखाएंगे। विदेशी मुद्रा भंडार एक देश की आर्थिक स्थिति और भुगतान क्षमता का आईना होता है। यह बढ़ोतरी भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निवेश के लिए और भी आकर्षक बनाएगी।

इसके अतिरिक्त, यह वृद्धि भारतीय रिजर्व बैंक को मुद्रास्फीति और ब्याज दरों को नियंत्रित करने के लिए अधिक नीतिगत स्वतंत्रता देती है। विदेशी मुद्रा भंडार की मजबूती से रुपये की मजबूती को बल मिलता है, जिससे आयात सस्ता होता है और महंगाई पर नियंत्रण पाने में मदद मिलती है।

भविष्य की राह

हाल के वर्षों में भारत ने निर्यात को बढ़ावा देने, विदेशी निवेश आकर्षित करने और घरेलू उत्पादन को मजबूत करने पर जोर दिया है। इन सभी उपायों का असर विदेशी मुद्रा भंडार पर भी दिख रहा है। आगामी महीनों में अगर वैश्विक स्थिति अनुकूल बनी रही और भारत का निर्यात तथा विदेशी निवेश बढ़ता रहा, तो यह उम्मीद की जा सकती है कि विदेशी मुद्रा भंडार एक बार फिर रिकॉर्ड स्तर को छू लेगा।

सरकार और आरबीआई को चाहिए कि वे इस प्रवृत्ति को बनाए रखने के लिए संतुलित विनिमय दर नीति, सतर्क आयात नियंत्रण और एफडीआई को आकर्षित करने के उपायों को मजबूती से लागू करें।

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