हिंदू धर्म में गंगा नदी का विशेष स्थान है। इसे न केवल पवित्र नदी माना जाता है, बल्कि यह जीवनदायिनी भी है। गंगा का जल शुद्धि और पवित्रता का प्रतीक है। हर वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाने वाला पर्व — गंगा दशहरा — इसी पावन नदी की महिमा का जश्न है। इस दिन की महत्ता और धार्मिक महत्व को जानना बेहद जरूरी है क्योंकि मान्यता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने और विधि-विधान से पूजा करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
गंगा दशहरा कब और क्यों मनाया जाता है?
गंगा दशहरा का पर्व ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को आता है। पंचांग के अनुसार इस बार यह तिथि 4 जून की देर रात से शुरू होकर 6 जून की सुबह तक रहेगी, और इस वर्ष गंगा दशहरा 5 जून को मुख्य रूप से मनाया जाएगा।
हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि इस दिन माँ गंगा धरती पर प्रकट हुई थीं और उन्होंने पापों को धोकर जीवन को पवित्र किया। इसलिए इस दिन गंगा नदी के तट पर श्रद्धालु स्नान करते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं।
गंगा दशहरा की पौराणिक कथा: राजा सगर के 60 हजार पुत्रों की मुक्ति
गंगा दशहरा की पौराणिक कथा भगवान राम के वंशज राजा सगर से जुड़ी है। राजा सगर की दो रानियां थीं — केशिनी और सुमति। दोनों रानियों को संतान की प्राप्ति नहीं हुई थी। वे दोनों हिमालय जाकर तपस्या और पूजा करने लगीं। तभी महर्षि भृगु ने उन्हें वरदान दिया कि एक रानी के संतान के रूप में 60 हजार पुत्र होंगे जो अभिमानी होंगे, जबकि दूसरी रानी से एक पुत्र होगा जो विवेकी और सुशील होगा।
केशिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, जबकि सुमति के गर्भ से एक पिंड निकला, जिसमें से 60 हजार पुत्र जन्मे। एक दिन राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ किया और अपने 60 हजार पुत्रों को यज्ञ के घोड़े की रक्षा का दायित्व दिया। परन्तु देवताओं ने छलपूर्वक उस घोड़े को चुरा लिया और उसे कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया।
सगर के पुत्रों ने कपिल मुनि के आश्रम में जाकर घोड़ा देखा और क्रोध में आकर कपिल मुनि का अपमान किया। तपस्वी कपिल मुनि ने क्रोधित होकर उनकी आंखों से ज्वाला निकाली, जिससे सभी 60 हजार पुत्र भस्म हो गए। उनके अस्थियां कपिल मुनि के आश्रम में पड़ी रहीं।
राजा सगर के वंशज राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माँ गंगा हिमालय से धरती पर आईं। गंगा के आगमन से राजा सगर के पुत्रों की अस्थियां विसर्जित हुईं और उन्हें मुक्ति मिली। इस घटना को याद करते हुए गंगा दशहरा पर्व मनाया जाता है।
गंगा दशहरा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
गंगा दशहरा का दिन हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं। यह स्नान न केवल शारीरिक शुद्धि का प्रतीक है, बल्कि आध्यात्मिक शुद्धि का भी। गंगा के जल में डुबकी लगाकर मनुष्य नए सिरे से पवित्रता और ऊर्जा से भर जाता है।
इस दिन पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। गंगा माता की विधिवत पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और व्यक्ति जीवन में सुख-समृद्धि का अनुभव करता है। गंगा दशहरा पर गंगा जल से स्नान कर, गंगाजल से भगवान की पूजा करने से देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।
गंगा दशहरा पूजा विधि
- स्नान: सुबह जल्दी उठकर गंगा नदी के किनारे स्नान करें। यदि संभव न हो तो अपने घर में भी गंगाजल से स्नान किया जा सकता है।
- पूजा सामग्री: गंगाजल, धूप, दीप, फल, फूल, नैवेद्य (भोजन), लाल वस्त्र, और पंचामृत तैयार करें।
- पूजा विधि: गंगा माता का ध्यान करते हुए उनका मंत्र जाप करें। "ॐ गंगायै नमः" या "ॐ जय गंगे माता" जैसे मंत्र उच्चारित करें।
- गंगाजल से स्नान: गंगाजल से अपने शरीर का अभिषेक करें और उसी जल को भगवान शिव, विष्णु और अन्य देवताओं को अर्पित करें।
- दान और सेवा: इस दिन दान करना शुभ माना जाता है। जरूरतमंदों को वस्त्र, अन्न, या गंगाजल वितरण करना अत्यंत पुण्यकारी होता है।
- व्रत और संकल्प: कई लोग इस दिन व्रत रखते हैं और गंगा माता से अपने जीवन के लिए स्वास्थ्य, सुख और शांति की प्रार्थना करते हैं।
गंगा दशहरा क्यों है महत्वपूर्ण?
गंगा दशहरा न केवल पवित्र नदी के महत्व को दर्शाता है बल्कि यह मनुष्य के पापों से मुक्ति पाने का एक अवसर भी है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि जीवन की आध्यात्मिक उन्नति के लिए शुद्धता आवश्यक है। माँ गंगा का जल, जो पापों को धोने वाला माना गया है, हमारे जीवन के नकारात्मक प्रभावों को मिटा सकता है।
इस पर्व का संदेश है कि हम अपने कर्मों का सही मूल्यांकन करें और आत्मा की शुद्धि के लिए प्रयास करें। गंगा दशहरा का पर्व हमें प्रकृति से जुड़ने, उसकी कद्र करने और पवित्रता का पाठ पढ़ाने वाला है।
गंगा दशहरा 2025 का पर्व 5 जून को बड़े धूमधाम से मनाया जाएगा। यह दिन मां गंगा के धरती पर अवतरण की याद दिलाता है, जब उन्होंने राजा सगर के पुत्रों को मुक्ति दिलाई थी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन गंगा नदी में स्नान करने और पूजा-अर्चना करने से जीवन के सभी पाप धुल जाते हैं और आत्मा शुद्ध होती है।
यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि आध्यात्मिकता, स्वच्छता और शुद्धता का भी संदेश देता है। गंगा दशहरा के अवसर पर अपने मन और कर्मों को भी स्वच्छ करने का संकल्प लें, ताकि जीवन में शांति, समृद्धि और खुशहाली बनी रहे।