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मूक जीवों की पुकार:इंसानियत और दया की प्रेरक कहानी

सर्दी की एक ठिठुरती सुबह थी, जब सूरज देवता ने तीन दिनों बाद अपनी झलक दिखाई। मैं, यानी सरिता, अपनी सहेली विमला के साथ आंगन में बैठी धूप सेंक रही थी। गली में हलचल थी, बच्चे खेल रहे थे, और कुछ गायें खुले मैदान में चर रही थीं। तभी, मेरी नजर एक गाय पर पड़ी, जो मटर के छिलकों के साथ-साथ एक प्लास्टिक की थैली भी खाने लगी।

बच्चे की सीख, बड़ों की अनदेखी

मेरे नाती अमन ने दौड़कर गाय के मुंह से वह थैली खींच ली और झट से विमला से बोला,
"विमला दादी! आप जानवरों को बचे हुए खाने के साथ प्लास्टिक क्यों डाल देती हैं? यह उनके लिए बहुत खतरनाक है!"

विमला ने नाक चढ़ाते हुए जवाब दिया,"अरे, कभी-कभार गलती से एकाध प्लास्टिक चली भी गई तो क्या? मैं ही तो रोज़ इनके लिए बचा हुआ खाना डालती हूँ!"

अमन तपाक से बोला, "वाह दादी, मतलब चार छोटे पुण्य के साथ एक बड़ा पाप मुफ्त!"

यह सुनते ही विमला तुनककर बोली, "ये नई पौध कुछ किताबें क्या पढ़ लेती है, खुद को बड़ा ज्ञानी समझने लगती है!"

बात बढ़ती देख मैंने अमन को अंदर भेज दिया, लेकिन विमला अब भी गुस्से में थी।

नई सोच, नई पहल

थोड़ी ही देर में विमला का नाती राहुल भी आ गया, उसके हाथों में कुछ पुरानी बोरियां, चटाई और शॉल थे। वह अमन को ढूंढते हुए बोला,
"सरिता दादी, अमन कहाँ है? हमें आज लावारिस जानवरों के लिए गर्म घर बनाने हैं। देखिए, मैं अपने घर से यह सब चीजें लाया हूँ!"

मैं मुस्कुराई, लेकिन विमला और चिढ़ गई। उसने गुस्से में राहुल के हाथ से अपना पुराना शॉल छीन लिया और बड़बड़ाती हुई घर चली गई। इधर अमन और राहुल ने मिलकर गली के अलग-अलग कोनों में कुत्तों और बिल्लियों के लिए छोटे-छोटे घर बना दिए। नन्हा टिमटिम, जो गली का सबसे चंचल पिल्ला था, खुशी-खुशी उनमें से एक में जा बैठा।

जब ठंड ने सबक सिखाया

शाम होते-होते ठंड और बढ़ गई। अचानक विमला के पेट में तेज दर्द उठा और राहुल और अमन उसे लेकर अस्पताल भागे। डॉक्टर ने कहा कि उन्हें ठंड लग गई है और पूरी तरह बचाव करना होगा। घर लौटते हुए विमला ने देखा कि सड़क किनारे कुछ जानवर ठिठुर रहे हैं। उस वक्त पहली बार उसके मन में सवाल उठा—"जब मैं इतनी गरम रज़ाई में होते हुए भी बीमार पड़ गई, तो ये बेजुबान कैसे ठंड सहते होंगे?"

ह्रदय परिवर्तन: जब आंखें खुलीं

अगले दिन सूरज निकला, और जो नज़ारा दिखा, वह हैरान कर देने वाला था। विमला अमन और राहुल के साथ गली में पड़े प्लास्टिक बीन रही थी और अपने पुराने गर्म कपड़े भी ले आई थी। मैं चौंककर उसके पास गई और बोली,
"अरे विमला! ये बदलाव कैसे?"

विमला मुस्कुराई और बोली, "सरिता बहन, जब हम इंसान ठंड से कांप सकते हैं, बीमार पड़ सकते हैं, तो ये बेजुबान जानवर कैसे सहते होंगे? जब हम साफ-सुथरा खाना खाने के बाद भी बीमार हो जाते हैं, तो ये प्लास्टिक खाकर क्या हाल में जीते होंगे?"

जिस नई पौध की सोच पर विमला ताने कसती थी, आज उसी नई पौध ने उसकी सोच बदल दी थी। मैंने उसे गले से लगा लिया और तभी नन्हा टिमटिम, जैसे यह सब समझ रहा हो, खुशी से विमला के पैरों से लिपट गया।

सीख: दया का स्पर्श हर दिल को बदल सकता है

विमला की तरह हम सभी को यह समझना होगा कि मूक जीवों के प्रति हमारी ज़िम्मेदारी भी उतनी ही बड़ी है जितनी इंसानों के प्रति। ज़रा सोचिए, अगर एक छोटी-सी जागरूकता एक इंसान की सोच बदल सकती है, तो हम सब मिलकर कितनी जिंदगियां बचा सकते हैं?

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