अमेरिकी कोर्ट ने ट्रंप के 'लिबरेशन डे' टैरिफ को गैरकानूनी बताया। भारत-पाक सीजफायर से जोड़ने की ट्रंप की दलीलें खारिज। अब टैरिफ पर फैसला संसद के हाथ में रहेगा।
Tariff: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को उनकी नीतियों पर एक और बड़ा झटका लगा है। मैनहैटन की एक संघीय अदालत ने 'लिबरेशन डे' टैरिफ पर रोक लगाते हुए इसे गैरकानूनी करार दिया है। अदालत ने साफ शब्दों में कहा कि टैरिफ लगाने का अधिकार केवल अमेरिकी संसद यानी कांग्रेस को है, राष्ट्रपति को नहीं। कोर्ट के इस फैसले से ट्रंप प्रशासन की दलीलों को करारा झटका लगा है, जिसमें उन्होंने भारत-पाकिस्तान सीजफायर से लेकर वैश्विक व्यापार के कई मुद्दों को जोड़ा था।
क्या था 'लिबरेशन डे' टैरिफ?
दरअसल, ट्रंप प्रशासन ने 2 अप्रैल को अमेरिका के ज्यादातर व्यापारिक साझेदारों पर 10% बेसिक टैरिफ लागू करने का ऐलान किया था। इस फैसले का मकसद अमेरिकी विनिर्माण क्षमता को मजबूत करना और चीन समेत कई देशों के साथ ट्रेड डेफिसिट को कम करना था। ट्रंप ने इन टैरिफ को अपने 'अमेरिका फर्स्ट' अभियान का हिस्सा बताया था। हालांकि, इससे अमेरिकी बाजारों में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिला और छोटे कारोबारियों पर इसका बुरा असर पड़ा।
कोर्ट में ट्रंप प्रशासन की दलीलें और भारत-पाक सीजफायर का जिक्र
कोर्ट में ट्रंप प्रशासन ने अपनी दलीलों में कई मुद्दे उठाए। उन्होंने कहा कि टैरिफ पावर का इस्तेमाल कर अमेरिका ने चीन के साथ ट्रेड असमानता को कम करने की कोशिश की। साथ ही यह भी कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए संघर्ष विराम में भी अमेरिकी टैरिफ नीतियों का योगदान रहा। ट्रंप प्रशासन ने दावा किया कि टैरिफ लागू करने से वैश्विक स्तर पर कई रणनीतिक फायदे हुए हैं, जिनमें भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर जैसी डिप्लोमैटिक उपलब्धियां भी शामिल हैं।
कोर्ट ने खारिज की ट्रंप की दलीलें
हालांकि, कोर्ट ने इन दलीलों को पूरी तरह से खारिज कर दिया। तीन जजों की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि अमेरिकी संविधान के तहत विदेशी देशों के साथ व्यापार और टैरिफ लगाने का अधिकार सिर्फ संसद को है, राष्ट्रपति को नहीं। कोर्ट ने यह भी कहा कि ट्रंप प्रशासन ने जिस इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर्स एक्ट (IEEPA) का हवाला दिया, वह उन्हें असीमित अधिकार नहीं देता। सिर्फ असाधारण आपातकाल की स्थिति में ही राष्ट्रपति को सीमित अधिकार मिल सकते हैं, और ट्रंप के मामले में ऐसा कोई वैध आपातकाल नहीं था।
कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?
जजों ने अपने फैसले में साफ लिखा कि राष्ट्रपति का यह दावा कि वह असीमित समय और दायरे में टैरिफ लागू कर सकते हैं, कानून के तहत उन्हें मिले अधिकारों से कहीं आगे की बात है। ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ अवैध हैं और इनका कोई कानूनी आधार नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि यह फैसला संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है, न कि राष्ट्रपति के।
ट्रंप प्रशासन ने अपने बचाव में यह भी कहा कि 1971 में तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने भी आपातकाल के तहत टैरिफ लगाए थे, जिसे कोर्ट ने मंजूरी दी थी। उन्होंने कहा कि आपातकाल की वैधता तय करना अदालत का नहीं, बल्कि कांग्रेस का अधिकार है। लेकिन कोर्ट ने इस दलील को भी खारिज कर दिया और कहा कि ट्रंप के मामले में वैध आपातकाल का कोई प्रमाण नहीं है।
ट्रंप के फैसले को किसने दी थी चुनौती?
ट्रंप के फैसले को लेकर दो बड़ी याचिकाएं दायर की गई थीं। एक याचिका छोटे व्यापारियों के एक समूह ने दायर की थी, जबकि दूसरी याचिका 12 डेमोक्रेटिक अटॉर्नी जनरल्स ने दायर की थी। उनका कहना था कि ट्रंप ने जिस कानून IEEPA का सहारा लिया, वह उन्हें दुनिया भर में एक साथ टैरिफ लगाने का अधिकार नहीं देता। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि दशकों से अमेरिका का ट्रेड डेफिसिट चल रहा है, लेकिन इससे कोई आपात स्थिति नहीं बनी।