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एलॉन मस्क के जाने के बाद DOGE का क्या भविष्य? जानिए क्या रहेगा असर और आगे की योजना

एलन मस्क ने ट्रंप प्रशासन के DOGE विभाग से इस्तीफा दिया। उनके जाने से विभाग की दिशा और नेतृत्व को लेकर सवाल उठे हैं। DOGE का भविष्य अब अनिश्चितता के घेरे में है।

America: डोनाल्ड ट्रंप ने 20 जनवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी, और इसके तुरंत बाद उन्होंने DOGE यानी डिपार्टमेंट ऑफ गवर्मेंट एफिशियंसी का गठन किया था। इसका मकसद था अमेरिका की सरकारी ब्यूरोक्रेसी को दुरुस्त करना और अनावश्यक खर्चों को कम करना। इस विभाग की जिम्मेदारी एलॉन मस्क को सौंपी गई थी, जो उस समय अमेरिका में राष्ट्रपति के बाद दूसरा सबसे ताकतवर व्यक्ति माने जा रहे थे। मस्क के इस्तीफे के बाद अब बड़ा सवाल यह है कि DOGE का भविष्य क्या होगा?

DOGE का गठन और मस्क की भूमिका

DOGE का गठन सरकारी खर्चों और धोखाधड़ी पर लगाम लगाने के लिए किया गया था। ट्रंप सरकार ने इसे "द मैनहटन प्रोजेक्ट" कहा था, जिसका उद्देश्य 2026 तक व्यापक बदलाव लाना था। एलॉन मस्क को इसका चीफ बनाया गया था, जबकि विवेक रामास्वामी को उनका डिप्टी बनाया गया था। हालांकि, कुछ समय बाद विवेक ने भी इस्तीफा दे दिया था।

DOGE को अमेरिका की 6.5 ट्रिलियन डॉलर की सरकारी फंडिंग के दुरुपयोग को रोकने और अनावश्यक खर्चों में दो ट्रिलियन डॉलर की कटौती करने का जिम्मा सौंपा गया था। लेकिन यह मिशन जितना बड़ा था, उतना ही विवादास्पद भी रहा।

विवादों में फंसा DOGE

DOGE की नीतियों का असर शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक कल्याण और पर्यावरण जैसे क्षेत्रों पर पड़ा। बड़े पैमाने पर सरकारी नौकरियां कम की गईं और इससे हजारों लोगों की रोज़गार पर संकट आ गया। नतीजा यह हुआ कि अमेरिका के कई शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए। वॉशिंगटन डीसी और न्यूयॉर्क में शिक्षक और स्वास्थ्यकर्मी यूनियनों ने सड़कों पर उतर कर DOGE के फैसलों के खिलाफ आवाज उठाई और इसे लोकतंत्र विरोधी बताया।

एलॉन मस्क के फैसलों ने उनकी अपनी कंपनी टेस्ला पर भी असर डाला। टेस्ला के शोरूम्स में विरोध और तोड़फोड़ हुई, और मस्क की छवि को झटका लगा। Tesla Takedown जैसे मूवमेंट्स ने अमेरिका और यूरोप में टेस्ला की ब्रांड इमेज को नुकसान पहुंचाया।

DOGE की नीतियों की आलोचना

DOGE के तहत सरकारी खर्चों को कम करने के प्रयासों की आलोचना यह कहकर की गई कि इससे समाज के कमजोर वर्गों पर असर पड़ा, खासकर उन परिवारों पर जो पहले से ही आर्थिक रूप से कमजोर थे। कई विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि इस तरह के फैसले सामाजिक असमानता को और बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा, सरकारी सेवाओं की गुणवत्ता पर भी असर पड़ा, जिससे आम जनता को परेशानी का सामना करना पड़ा।

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