शिरोमणि अकाली दल के वरिष्ठ नेता सुखदेव सिंह ढींडसा का निधन हो गया। ढींडसा ने सुखबीर बादल को पार्टी प्रमुख बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। उनका योगदान अकाली राजनीति में हमेशा याद रहेगा।
Punjab News: अकाली राजनीति के एक और बड़े चेहरे, सुखदेव सिंह ढींडसा का निधन हो गया। वह शिरोमणि अकाली दल के मॉडरेट धड़े के सबसे अहम नेताओं में गिने जाते थे। ढींडसा ने अपनी राजनीतिक यात्रा में पंजाब की राजनीति को एक नई दिशा दी। उनकी पहचान एक जमीनी नेता के रूप में रही, जिन्होंने हमेशा पार्टी की मजबूती के लिए काम किया। ढींडसा, शिरोमणि अकाली दल के संरक्षक और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के बेहद करीबी रहे। दोनों के बीच राजनीतिक सफर कई मोड़ और उतार-चढ़ाव से भरा रहा, लेकिन ढींडसा ने ज्यादातर मौकों पर बादल का साथ दिया।
सुखबीर बादल को बनाया पार्टी का प्रमुख
ढींडसा ने ही 2007 में सुखबीर सिंह बादल को शिरोमणि अकाली दल के प्रधान पद के लिए प्रस्तावित किया था। यह उस दौर की बात है जब भाजपा और अकाली दल के गठबंधन ने पंजाब में सत्ता में वापसी की थी। पार्टी को सत्ता में लाने के पीछे सुखबीर बादल की रणनीति और मेहनत का बड़ा हाथ था, लेकिन ढींडसा की राजनीतिक समझ और सूझबूझ ने ही इस फैसले को आगे बढ़ाया।
उन्होंने समय की नब्ज को पहचानते हुए सुखबीर बादल को पार्टी की कमान सौंपने में अहम भूमिका निभाई।
1985 में बरनाला सरकार से दूरी
साल 1985 में जब सुरजीत सिंह बरनाला के नेतृत्व में पंजाब में सरकार बनी, तब सुखदेव सिंह ढींडसा जैसे वरिष्ठ नेता, जो चौथी बार विधायक बने थे, सरकार का हिस्सा नहीं बने। यह फैसला इस बात का संकेत था कि ढींडसा, प्रकाश सिंह बादल के साथ खड़े रहना चाहते थे, जिन्होंने बरनाला सरकार का विरोध किया था।
बरनाला सरकार के दौरान हुआ ऑपरेशन ब्लैक थंडर अकाली राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बना। यह ऑपरेशन अमृतसर स्थित श्री हरिमंदिर साहिब परिसर में छिपे आतंकवादियों को हटाने के लिए चलाया गया था। इस पर अकाली दल में गहरे मतभेद थे, और ढींडसा ने इस दौरान भी बादल का साथ नहीं छोड़ा। वह हमेशा से मॉडरेट लाइन के समर्थक रहे और कट्टरपंथी विचारधारा के खिलाफ मजबूती से खड़े हुए।
लोंगोवाल की हत्या के बाद भी डटे रहे ढींडसा
संत हरचंद सिंह लोंगोवाल की हत्या के बाद अकाली राजनीति में अस्थिरता फैल गई थी। उस समय ढींडसा और बादल जैसे नेताओं ने पार्टी को संभालने की जिम्मेदारी उठाई। यह वह दौर था जब अकाली दल में दो धाराएं बन चुकी थीं - एक तरफ मॉडरेट सोच वाले नेता, तो दूसरी ओर कट्टरपंथी नेता। ढींडसा ने हमेशा पार्टी को मुख्यधारा की राजनीति में बनाए रखने की कोशिश की और इसीलिए वह बादल के सबसे करीबी सहयोगियों में माने जाते थे।
भाजपा के साथ गठबंधन पर भी दिया साथ
1996 में जब शिरोमणि अकाली दल ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ गठबंधन करने का फैसला लिया, तब भी ढींडसा ने प्रकाश सिंह बादल के फैसले का समर्थन किया। हालांकि गठबंधन के बाद उन्हें मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई थी, जिससे वह कुछ समय के लिए नाराज भी हुए, लेकिन बादल ने उन्हें मना लिया। इसके बाद भी उन्होंने पार्टी के लिए लगातार काम किया और पंजाब की राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बनाई।
ढींडसा का पार्टी से अलग होना और आखिरी सफर
हालांकि, अपने राजनीतिक जीवन के अंतिम वर्षों में सुखदेव सिंह ढींडसा का शिरोमणि अकाली दल से मोहभंग हो गया था। उन्होंने 2018 में पार्टी छोड़ दी और शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) नाम से नई पार्टी बनाई। लेकिन उनकी राजनीतिक विरासत को सबसे ज्यादा याद किया जाएगा, वह शिरोमणि अकाली दल में उनकी भूमिका के लिए। उन्होंने न केवल पार्टी को मजबूत किया, बल्कि कई अहम मौकों पर पार्टी को टूटने से भी बचाया।