वक्फ अधिनियम 2013 और उसके हालिया संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को भी सुनवाई हुई, जिसमें केंद्र सरकार ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि वक्फ बोर्ड की संरचना और कार्यप्रणाली की तुलना हिंदू धार्मिक न्यास बोर्ड से करना विधिसम्मत नहीं है।
नई दिल्ली: वक्फ कानून में किए गए संशोधनों के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है, और इस मामले में आज भी सुनवाई होनी है। बुधवार को सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में दलील दी कि ट्रस्ट की जमीन को सरकार सभी नागरिकों के हित में सुनिश्चित करना चाहती है।
उन्होंने यह भी कहा कि वक्फ अधिनियम 2013 के संशोधन से पहले इस कानून के सभी संस्करणों में स्पष्ट रूप से उल्लेख था कि केवल मुसलमान ही अपनी संपत्ति वक्फ कर सकते हैं।
सरकार की दलील: वक्फ संपत्ति का प्रबंधन धर्म से अलग मुद्दा
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वक्फ बोर्ड की भूमिका केवल संपत्ति प्रबंधन की है। उन्होंने तर्क दिया कि वक्फ संपत्ति का प्रशासन एक धर्मनिरपेक्ष प्रक्रिया है, और इसे भारतीय राज्य नियंत्रित कर सकता है। इसके उलट हिंदू धार्मिक न्यास बोर्ड सीधे धार्मिक गतिविधियों से जुड़े होते हैं, जैसे पूजा-पाठ और मंदिरों की अनुष्ठानिक देखरेख।
उन्होंने अदालत को बताया कि संसद को इस क्षेत्र में कानून बनाने की पूरी संवैधानिक शक्ति प्राप्त है और वर्तमान में विचाराधीन वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 को लेकर किसी याचिकाकर्ता ने संसद की विधायी क्षमता पर सवाल नहीं उठाया है।
वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम बहुमत की आशंका निराधार
सुनवाई के दौरान मेहता ने संयुक्त संसदीय समिति (JPC) द्वारा प्राप्त आश्वासन का हवाला देते हुए कहा कि वक्फ काउंसिल और राज्य वक्फ बोर्ड का अल्पसंख्यक स्वरूप कभी नहीं बदलेगा। उन्होंने बताया कि इसमें सदस्यता के लिए प्रक्रिया इस प्रकार तय की गई है कि अधिकांश सदस्य मुस्लिम समुदाय से ही होंगे।
यह बयान वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की उस आशंका के जवाब में दिया गया था जिसमें उन्होंने कहा था कि वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के माध्यम से सरकार वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को बहुमत में लाने की दिशा में बढ़ रही है।
सिब्बल का सवाल: मुस्लिम संस्थानों को अलग क्यों ट्रीट किया जाए?
मंगलवार को कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम समुदाय की चिंताओं को उठाते हुए कहा था कि जब सरकार हिंदू, सिख या ईसाई धार्मिक संस्थानों में गैर-विश्वासियों को सदस्य नहीं बनाती, तो मुसलमानों के मामलों में अलग रुख क्यों? उन्होंने इसे संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन बताया, जो धर्म के आधार पर भेदभाव से बचाव करता है।
मेहता ने कोर्ट को जानकारी दी कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने वक्फ बोर्डों के कार्यों को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि कई संरक्षित स्मारकों को वक्फ संपत्ति घोषित कर इन पर व्यवसायिक गतिविधियां चलाई जा रही थीं, जिससे उनके संरक्षण में बाधा उत्पन्न हो रही थी। उन्होंने बताया कि कुछ मामलों में वक्फ बोर्ड ने ASI को मरम्मत कार्य से भी रोक दिया था, जिससे ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण में गंभीर अड़चनें आईं।
चार्टिबल ट्रस्ट से तुलना पर केंद्र का रुख
केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि वक्फ बोर्ड को एक प्रकार के धर्मनिरपेक्ष ट्रस्ट के रूप में देखना चाहिए, जैसे कि चैरिटेबल ट्रस्ट या हाउसिंग बोर्ड। मेहता ने यह भी कहा कि हिंदू धर्मस्थलों की देखरेख में ट्रस्ट के सदस्य मंदिरों में अनुष्ठानिक भूमिका निभा सकते हैं, जबकि वक्फ बोर्ड के सदस्य केवल प्रशासनिक जिम्मेदारी निभाते हैं।
इसके साथ ही उन्होंने बताया कि चैरिटी कमिश्नर, जो खुद गैर-हिंदू हो सकते हैं, हिंदू मंदिरों के अर्चकों की नियुक्ति या बर्खास्तगी भी कर सकते हैं, जिसे सुप्रीम कोर्ट पहले ही धर्मनिरपेक्ष गतिविधि मान चुका है।
सुनवाई आज फिर जारी रहेगी
सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज गुरुवार को भी सुनवाई जारी रहेगी। अदालत का ध्यान इस बात पर केंद्रित है कि क्या इस संशोधन से संविधान प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता और गैर-भेदभाव के अधिकारों का उल्लंघन होता है। सरकार यह भी स्पष्ट कर चुकी है कि वह वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन चाहती है ताकि सभी नागरिकों को लाभ मिल सके और देश की ऐतिहासिक विरासत की रक्षा की जा सके। केंद्र ने आश्वासन दिया कि मुस्लिम समुदाय की पहचान और उनके अधिकारों का सम्मान बना रहेगा।