भारत में खेती अब सिर्फ जीविका नहीं, बल्कि समृद्धि का साधन बन रही है। केंद्र सरकार की हालिया रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि वर्ष 2013-14 से 2024-25 के बीच कृषि क्षेत्र में ऐतिहासिक बदलाव आए हैं।
बिज़नेस: भारत की कृषि व्यवस्था ने पिछले 11 वर्षों में ऐसा विकास और विस्तार किया है, जिसने देश को विश्व स्तर पर एक मजबूत कृषि शक्ति के रूप में स्थापित किया है। बीज से लेकर बाजार तक की रणनीतियों में बदलाव, बजट आवंटन में वृद्धि, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की मजबूती और किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) जैसी योजनाओं ने भारतीय किसान की किस्मत बदली है।
सरकार ने हाल ही में एक रिपोर्ट में बताया कि 2013-14 से लेकर 2024-25 तक कृषि क्षेत्र में अनेक सकारात्मक बदलाव हुए हैं, जिनका असर न केवल उत्पादन पर पड़ा है बल्कि किसानों की आमदनी और उनकी समृद्धि पर भी साफ दिख रहा है।
उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि
2014-15 में भारत का कुल खाद्यान्न उत्पादन 26.50 करोड़ टन था, जो 2024-25 में बढ़कर लगभग 34.74 करोड़ टन होने का अनुमान है। यह लगभग 31% की वृद्धि दर्शाता है, जो खेती के नए तरीकों, बेहतर बीजों, सिंचाई और फसल प्रबंधन में सुधार का नतीजा है। इस वृद्धि ने भारत को खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में अहम भूमिका निभाई है।
सरकार के कृषि विभाग के अनुसार, यह बदलाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ‘बीज से बाजार तक’ की फिलोसॉफी के तहत हुआ है। इसका मतलब है कि किसान अब न सिर्फ बेहतर बीज और तकनीक से लैस हैं, बल्कि उनके उत्पाद को बाजार तक पहुंचाने के लिए मजबूत नेटवर्क भी तैयार किया गया है।
बजट आवंटन में पांच गुना बढ़ोतरी
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के बजट का विश्लेषण करें तो 2013-14 में यह 27,663 करोड़ रुपये था, जो बढ़कर 2024-25 में 1,37,664.35 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। यह पांच गुना से अधिक की वृद्धि है, जो दर्शाती है कि सरकार ने इस क्षेत्र को सशक्त बनाने के लिए निरंतर संसाधन मुहैया कराए हैं। इस बजट वृद्धि का सीधा असर विभिन्न कृषि योजनाओं, ऋण सुविधाओं, बीमा और टेक्नोलॉजी आधारित सेवाओं पर पड़ा है।
MSP में बढ़ोतरी से किसान हुए आत्मनिर्भर
सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में भी महत्वपूर्ण बढ़ोतरी की है। उदाहरण के लिए, 2013-14 में गेहूं का MSP 1,400 रुपये प्रति क्विंटल था, जो अब 2024-25 में बढ़कर 2,425 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। इसी तरह धान का MSP 1,310 रुपये से बढ़कर लगभग 2,369 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच चुका है। यह बढ़ोतरी किसानों के लिए आय के स्थिर स्रोत प्रदान करती है और बाजार में उनकी फसल की उचित कीमत सुनिश्चित करती है।
पीएम-किसान योजना से लाभान्वित हुए करोड़ों किसान
फरवरी 2019 में शुरू की गई प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (PM-Kisan) ने 11 करोड़ से अधिक किसानों को लगभग 3.7 लाख करोड़ रुपये सीधे उनके बैंक खातों में वितरित किए हैं। इस योजना ने खासकर छोटे और सीमांत किसानों को वित्तीय सहायता देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर हुई और उनकी कृषि गतिविधियां सुचारू रूप से चल सकीं।
KCC योजना से किसानों को आर्थिक सहारा
किसान क्रेडिट कार्ड योजना (KCC) के तहत अब तक 7.71 करोड़ किसानों को करीब 10 लाख करोड़ रुपये का कृषि ऋण उपलब्ध कराया गया है। इस सुविधा ने किसानों को खेती के लिए जरूरी पूंजी आसानी से उपलब्ध कराकर कृषि उत्पादन को बढ़ावा दिया है। इससे किसान आधुनिक कृषि उपकरण, बीज, उर्वरक और कीटनाशकों पर खर्च कर बेहतर उत्पादन कर पा रहे हैं।
फसल खरीद में सुधार और दलहन, तिलहन की मांग
खरीफ फसलों की खरीद में भी जबरदस्त बढ़ोतरी देखी गई है। वित्त वर्ष 2004-14 के बीच खरीफ की खरीद 46.79 करोड़ टन थी, जो वित्त वर्ष 2014-25 में बढ़कर 78.71 करोड़ टन हो गई। इसके अलावा, MSP पर दलहन की खरीद में भी बढ़ोतरी हुई है — 2009-14 में 1.52 लाख टन से बढ़कर 2020-25 में 83 लाख टन हो गई। तिलहन की खरीद में भी कई गुना वृद्धि हुई है। यह बदलाव किसानों की आय बढ़ाने और पोषण सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम है।
कृषि में तकनीकी नवाचार और विविधता
सरकार ने सिंचाई प्रणाली को आधुनिक बनाने, कृषि ऋण को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराने, और एग्री-टेक्नोलॉजी इनोवेशंस को बढ़ावा देने पर जोर दिया है। इसके अलावा, बाजरा जैसी पारंपरिक और पोषण युक्त फसलों को पुनर्जीवित किया गया है। प्राकृतिक खेती को भी बढ़ावा मिल रहा है, जो पर्यावरण संरक्षण और टिकाऊ विकास की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
डेयरी, मत्स्य पालन और अन्य संबद्ध क्षेत्रों में भी विस्तार हुआ है, जिससे किसानों की आय के अतिरिक्त स्रोत बने हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़े हैं और कृषि पर निर्भरता कम होने लगी है।
भारत का कृषि क्षेत्र: वैश्विक नेतृत्व की ओर
सरकार का मानना है कि भारत ‘अमृत काल’ में प्रवेश कर चुका है और इसके सशक्त किसान देश को खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ वैश्विक खाद्य नेतृत्व तक ले जाएंगे। पिछले 11 वर्षों में हुए इस विकास से साफ है कि भारत की कृषि अब केवल घरेलू जरूरतें पूरी करने तक सीमित नहीं है, बल्कि निर्यात के क्षेत्र में भी अग्रणी भूमिका निभा रही है।