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'आमनगर' से बदल सकता है भारत का आम कारोबार, जानिए कैसे मुकेश अंबानी बना सकते हैं नया ग्लोबल मॉडल

'आमनगर' से बदल सकता है भारत का आम कारोबार, जानिए कैसे मुकेश अंबानी बना सकते हैं नया ग्लोबल मॉडल

भारत दुनिया में आम का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, लेकिन इसके बावजूद निर्यात के मामले में वह चौथे नंबर पर है। हर साल भारत में लगभग 2.6 करोड़ टन आम का उत्पादन होता है, लेकिन केवल 0.13% हिस्सा ही अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंच पाता है। 

बिजनेस: भारत में आम के उत्पादन और निर्यात के इस असंतुलन की वजहें कई हैं खराब कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर, छोटे व असंगठित खेत, जटिल सरकारी नियम और एक्सपोर्ट के लिए कम उपयुक्त किस्मों का उत्पादन। लेकिन अब रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी के एक बड़े एग्रीकल्चर प्रोजेक्ट से इस तस्वीर के बदलने की उम्मीद जगी है।

हर साल भारत में लगभग 2.6 करोड़ टन आम का उत्पादन होता है, लेकिन केवल 0.13% हिस्सा ही अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंच पाता है। इसकी तुलना में मेक्सिको, जो उत्पादन में भारत से काफी पीछे है, अपने 22.5% आमों का निर्यात करता है और इससे 575 मिलियन डॉलर (करीब 4,800 करोड़ रुपये) की कमाई करता है।

क्या है ‘आमनगर’ प्रोजेक्ट?

रिलायंस इंडस्ट्रीज ने गुजरात के जामनगर में 'आमनगर' नामक एक विशाल आम उत्पादन प्रोजेक्ट की शुरुआत की है। यह प्रोजेक्ट 600 एकड़ जमीन में फैला है और इसमें 1.3 लाख से अधिक आम के पेड़ लगाए गए हैं। खास बात यह है कि इसमें 200 से अधिक किस्मों के आम उगाए जा रहे हैं—जिनमें केवल भारतीय किस्में ही नहीं, बल्कि वैश्विक बाजारों में लोकप्रिय किस्में भी शामिल हैं।

रिलायंस इस प्रोजेक्ट में अत्याधुनिक तकनीक, वैज्ञानिक प्रबंधन और एकीकृत सप्लाई चेन का इस्तेमाल कर रहा है। कंपनी का उद्देश्य न सिर्फ भारत में उच्च गुणवत्ता के आम पैदा करना है, बल्कि उसे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में एक मजबूत ब्रांड के रूप में स्थापित करना भी है।

भारत क्यों पीछे रह गया?

फिनफ्लो नाम की एक एग्री-डेटा कंपनी ने इस विषय पर एक रिपोर्ट में बताया कि भारत के आम उद्योग की बड़ी समस्याएं हैं:

  • कोल्ड चेन की कमी: खेत से बाजार तक आम को सही तापमान पर रखने की व्यवस्था बेहद सीमित है, जिससे लगभग 40% आम खराब हो जाते हैं।
  • छोटे और असंगठित खेत: किसान व्यक्तिगत स्तर पर उत्पादन करते हैं, जिससे क्वालिटी कंट्रोल और स्टैंडर्डाइजेशन मुश्किल होता है।
  • सरकारी नियम और प्रक्रियाएं: एक्सपोर्ट से जुड़े नियम जटिल हैं, जिससे छोटे किसान इसमें भाग नहीं ले पाते।
  • किस्मों की असंगति: भारत की पारंपरिक किस्में (जैसे दशहरी, लंगड़ा, हापुस) विदेशी बाजारों की मांग के अनुरूप नहीं हैं, जहां 'टॉमी एटकिंस', 'केंट', 'अटॉलफो' जैसी किस्मों की मांग अधिक है।

कैसे अंबानी बदल सकते हैं सीन?

फिनफ्लो की रिपोर्ट के अनुसार, अंबानी का 'आमनगर' प्रोजेक्ट भारत के आम उद्योग के लिए वैसा ही बदलाव ला सकता है जैसा जियो ने टेलीकॉम सेक्टर में किया था। रिलायंस ने न केवल उत्पादन को वैज्ञानिक तरीके से शुरू किया है, बल्कि पोस्ट-हार्वेस्ट प्रबंधन, स्टोरेज, पैकेजिंग, और एक्सपोर्ट चैनल्स को भी अपने नियंत्रण में रखा है।

इस पूरी प्रक्रिया को केंद्रीकृत कर अंबानी ने एक ऐसा मॉडल तैयार किया है जो न केवल उत्पादन बढ़ाता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मानकों पर आधारित क्वालिटी भी सुनिश्चित करता है। इससे भारत वैश्विक आम बाजार में एक बड़ा खिलाड़ी बन सकता है।

मेक्सिको से क्या सीख सकता है भारत?

मेक्सिको की सफलता सिर्फ संयोग नहीं है। वहां की सरकार ने:

  • आम की नवीन किस्मों को बढ़ावा दिया
  • SENASICA जैसी एजेंसी के माध्यम से कृषि निर्यात नियमों को आसान बनाया
  • सप्लाई चेन का आधुनिकीकरण किया
  • किसानों को तकनीकी और आर्थिक सहायता दी
  • भारत भी यदि यही रणनीति अपनाए—सरल नियम, बेहतर तकनीक, केंद्रित उत्पादन और मार्केटिंग—तो आम के मामले में वैश्विक लीडर बन सकता है।

भविष्य की दिशा और अवसर

विश्व बाजार में आम की मांग तेजी से बढ़ रही है। अनुमान है कि 2025 तक वैश्विक आम की मांग 6.5 करोड़ टन तक पहुंच सकती है। ऐसे में भारत के पास बड़ा अवसर है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि देश भर में 'आमनगर मॉडल' जैसी पहलें अपनाई जाएं। यदि रिलायंस का मॉडल सफल होता है, तो यह भारत के हजारों किसानों को जोड़ सकता है, कृषि क्षेत्र को संगठित बना सकता है और देश को आम निर्यात के मामले में नंबर 1 बना सकता है।

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