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Punjab Politics: पंजाब की सियासत में हलचल, शिअद-बीजेपी गठबंधन की चर्चा फिर तेज, जानें पूरा समीकरण

Punjab Politics: पंजाब की सियासत में हलचल, शिअद-बीजेपी गठबंधन की चर्चा फिर तेज, जानें पूरा समीकरण

लुधियाना उपचुनाव में मिली हार के बाद शिअद और भाजपा फिर से गठबंधन की संभावनाएं तलाश रहे हैं। नेताओं का मानना है कि एकजुट होकर चुनाव लड़ने से ही राजनीतिक मजबूती मिल सकती है।

Punjab Politics: लुधियाना पश्चिम विधानसभा उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी और शिरोमणि अकाली दल को करारी हार का सामना करना पड़ा है। इस हार के बाद दोनों दलों के बीच एक बार फिर से पुराने गठबंधन को बहाल करने की चर्चाएं तेज़ हो गई हैं। दोनों पार्टियों के नेताओं को अब यह समझ में आने लगा है कि अकेले चुनाव लड़ने की रणनीति उन्हें लगातार नुकसान पहुंचा रही है।

उपचुनाव में हार ने बदला राजनीतिक मूड

लुधियाना पश्चिम में हुए उपचुनाव में भाजपा तीसरे और शिअद चौथे स्थान पर रही। इस नतीजे ने दोनों दलों की राजनीतिक रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जहां आम आदमी पार्टी को इस सीट पर जीत मिली, वहीं भाजपा और शिअद को वोट प्रतिशत के हिसाब से भी भारी गिरावट का सामना करना पड़ा।

अलग होकर कमजोर हुई दोनों पार्टियों की ताकत

कृषि कानूनों के विरोध के बाद 2020 में शिअद ने भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ दिया था। इसके बाद से दोनों पार्टियों ने पंजाब में अलग-अलग चुनाव लड़े। परिणामस्वरूप, जहां 2022 के विधानसभा चुनाव में शिअद सिर्फ तीन सीटों पर सिमट गया, वहीं भाजपा दो ही सीटें जीत पाई। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को राज्य में एक भी सीट नहीं मिली और शिअद महज एक सांसद तक सिमट गई।

उपचुनावों में भी नहीं मिला भरोसा

2022 से अब तक पंजाब में छह उपचुनाव हो चुके हैं। इन उपचुनावों में शिअद ने चार में भाग नहीं लिया। जालंधर पश्चिम और लुधियाना पश्चिम में वह मैदान में उतरी, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। इस दौरान मतदाता भी यह मानने लगे हैं कि इन दलों के अकेले चुनाव लड़ने का कोई असर नहीं रह गया है।

वोटों का बंटवारा बना हार की वजह

लुधियाना पश्चिम उपचुनाव में भाजपा और शिअद को कुल मिलाकर 28,526 वोट मिले। वहीं आम आदमी पार्टी को अकेले 35,179 वोट प्राप्त हुए। शिअद के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि अगर दोनों दल साथ होते, तो यह सीट उनके पक्ष में जा सकती थी। उनका यह भी कहना है कि अब समय आ गया है कि एकजुट होकर राजनीतिक लड़ाई लड़ी जाए, ताकि राज्य में दोबारा प्रभावी उपस्थिति दर्ज की जा सके।

गठबंधन की पुरानी विरासत

1966 में पंजाब के पुनर्गठन के बाद से शिअद ने भाजपा के साथ मिलकर आठ बार सरकार बनाई है। यह गठबंधन राज्य की राजनीति में लंबे समय तक प्रभावशाली रहा। पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके प्रकाश सिंह बादल भी इस गठबंधन को ‘नाखून और मांस का रिश्ता’ बताते थे। यही कारण है कि आज पार्टी के कई पुराने नेता फिर से इसी मॉडल पर वापसी की मांग कर रहे हैं।

पंथक एकता पर फिर जोर

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ लगातार ‘पंथक एकता’ की बात करते हुए पार्टी हाईकमान को गठबंधन की महत्ता समझाने में लगे हुए हैं। उनका मानना है कि पंजाब की राजनीति में संतुलन और स्थिरता लाने के लिए शिअद और भाजपा का साथ आना ज़रूरी है। साथ ही यह गठबंधन राज्य में सामाजिक सौहार्द बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

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