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वेब सीरीज रिव्यू – ‘इन ट्रांजिट’: 9 ज़िंदगियों की कहानी, जब कैमरा बना बदलाव का आईना

वेब सीरीज रिव्यू – ‘इन ट्रांजिट’: 9 ज़िंदगियों की कहानी, जब कैमरा बना बदलाव का आईना

'इन ट्रांजिट' एक सशक्त और संवेदनशील डॉक्यूमेंट्री सीरीज है, जो भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने के भीतर छिपी उन आवाज़ों को सामने लाती है जिन्हें अक्सर अनसुना कर दिया जाता है। यह सीरीज नौ ट्रांसजेंडर और नॉन-बाइनरी व्यक्तियों की ज़िंदगी में गहराई से उतरती है।

  • वेब सीरीज रिव्यू: इन ट्रांजिट
  • ऐक्टर: सहर नाज़,अनुभूति बनर्जी,पटरुनी चिदानंद शास्त्री,रुम‍ि हरीश
  • डायरेक्टर: आयशा सूद
  • श्रेणी: Hindi, Documentary, Drama
  • क्रिटिक रेटिंग: 3.5/5

एंटरटेनमेंट: भारत में ट्रांसजेंडर और नॉन-बाइनरी समुदाय की आवाज़ लंबे समय से हाशिए पर रही है अनसुनी, अनदेखी और उपेक्षित। लेकिन ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के इस युग में, कुछ क्रिएटर्स अब उन कहानियों को सामने लाने की कोशिश कर रहे हैं जो समाज की असल परतों को उजागर करती हैं। इसी कड़ी में आई डॉक्यूमेंट्री वेब सीरीज़ ‘इन ट्रांजिट’ एक साहसी, भावुक और ईमानदार प्रयास है, जो भारत के नौ ट्रांसजेंडर और नॉन-बाइनरी लोगों की अंतरंग जीवन यात्रा को दर्शाती है।

कहानी नहीं, असल ज़िंदगी है ‘इन ट्रांजिट’

'इन ट्रांजिट' कोई काल्पनिक कथा नहीं है। यह नौ असली लोगों की कहानियों का कोलाज है, जिनकी पहचान और अस्तित्व की लड़ाई हर रोज़ एक नई चुनौती से गुजरती है। यह डॉक्यूमेंट्री मुंबई, बेंगलुरु, जमशेदपुर, त्रिपुरा और हरियाणा जैसे विविध क्षेत्रों से इन व्यक्तियों की आवाज़ को उठाती है। सीरीज़ दिखाती है कि ट्रांसजेंडर होने का संघर्ष सिर्फ शरीर से नहीं, समाज, परिवार, संस्थानों और अपने भीतर के डर से भी है।

पहले एपिसोड में सभी नौ किरदारों से परिचय कराया जाता है, लेकिन आगे के एपिसोड्स में कैमरा हर एक की ज़िंदगी में धीरे-धीरे गहराई से उतरता है — भावनात्मक संघर्ष, आत्मस्वीकार की पीड़ा, और पहचान के लिए जद्दोजहद को विस्तार से दिखाता है।

हर कहानी, एक अनसुना अध्याय

अनुभूति बनर्जी की कहानी उम्मीद की रोशनी दिखाती है, जहां परिवार का सपोर्ट किसी वरदान से कम नहीं लगता। वह अब कॉर्पोरेट सेक्टर में उच्च पद पर कार्यरत हैं। दूसरी ओर टीना नाज़, हरियाणा की एक गांव से हैं, जिन्होंने समाज की बेरुखी, आर्थिक तंगी और अस्वीकार को झेला है। उनकी आंखों में आज भी संघर्ष की गहराई दिखती है।

आर्यन सोमैया की कथा मार्मिक और चुभने वाली है, जो वर्षों तक अपने शरीर को स्वीकार नहीं कर पाए। उनका अनुभव मानसिक हिंसा और आत्म-अस्वीकृति का नंगा सच उजागर करता है। माधुरी सरोदे शर्मा, जो अपने ट्रांस आइडेंटिटी के साथ विवाह रचाने वाली पहली महिला हैं, समाज के लिए प्रेरणा बनती हैं। उनका सफर दिखाता है कि प्यार और स्वीकार्यता की कोई सीमा नहीं होती।

निर्माण, प्रस्तुति और सिनेमैटिक शैली

जोया अख्तर और रीमा कागती द्वारा प्रोड्यूस की गई यह सीरीज सहानुभूति और संवेदनशीलता के संतुलन के साथ बनाई गई है। निर्देशन में डॉक्यूमेंट्री की गंभीरता के साथ मानवीय स्पर्श को प्राथमिकता दी गई है। न कैमरा इनकी कहानियों को भुनाता है, न ही ज़रूरत से ज्यादा मेलोड्रामा का सहारा लेता है।सिनेमैटोग्राफी बेहद निजी और ईमानदार है। कैमरा इन पात्रों के बेहद नाजुक पलों में भी उनकी निजता का सम्मान करता है। बैकग्राउंड म्यूज़िक साधारण है लेकिन भावनाओं को गहराई से छू जाता है।

भावनात्मक जुड़ाव और समाज पर प्रभाव

‘इन ट्रांजिट’ की सबसे बड़ी ताकत यह है कि यह दर्शकों को सिर्फ जानकारी नहीं, समझ और अनुभव देती है। आप इन नौ लोगों की कहानियों को देखते नहीं, महसूस करते हैं। इनकी आंखों में दर्द और उम्मीद का वो मिश्रण है, जो आपको स्क्रीन से बांध देता है। हालांकि सीरीज में ट्रांस लोगों की कहानियों को शानदार ढंग से पेश किया गया है, लेकिन उनके परिवार, पार्टनर्स या समाज से बातचीत की कमी थोड़ी अखरती है। यह पहलू कुछ किरदारों जैसे टीना नाज़ की कहानी में दिखाया गया, लेकिन बाकी किरदारों के सामाजिक इंटरैक्शन को और भी उभारा जा सकता था।

'इन ट्रांजिट' केवल एक वेब सीरीज नहीं है — यह एक दस्तावेज है उस सामाजिक बदलाव का, जिसकी भारत को सख्त ज़रूरत है। ट्रांसजेंडर समुदाय को सिर्फ कानूनों में नहीं, दिलों और दिमागों में भी जगह चाहिए। यह सीरीज उस खिड़की को खोलती है। जोया अख्तर और रीमा कागती की यह प्रस्तुति सिर्फ एलजीबीटीक्यूIA+ दर्शकों के लिए नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए है जो इंसानियत को महसूस करता है। यह सीरीज स्कूलों, कॉलेजों और संस्थानों में दिखाई जानी चाहिए — ताकि अगली पीढ़ी सिर्फ सहिष्णु न हो, बल्कि सच में समावेशी हो।

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