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घंटाघर से लौटेगी लुटियंस दिल्ली की पहचान, अर्बन आर्ट कमीशन ने दी नई डिजाइन को मंजूरी

नई दिल्ली में समय की नब्ज फिर से पुराने अंदाज में सुनाई देगी। लुटियंस दिल्ली के सौंदर्यीकरण और सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) राजधानी को एक नया लेकिन ऐतिहासिक स्पर्श देने जा रही है।

नई दिल्ली: लुटियंस दिल्ली में एक बार फिर घंटाघर उसकी नई पहचान बनने जा रहा है। उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना के दिशा-निर्देश पर इसका निर्माण कार्य अब अंतिम चरण में पहुंच चुका है। दिल्ली अर्बन आर्ट कमीशन से डिजाइन को मंजूरी मिलने के बाद नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) ने इसे वर्ष के अंत तक पूरा करने का लक्ष्य तय किया है।

घंटाघर के निर्माण के बाद यह न सिर्फ एक स्थापत्य आकर्षण होगा, बल्कि लुटियंस दिल्ली के प्रवेश द्वार की भी पहचान बनेगा। यह घंटाघर शंकर रोड पर तालकटोरा स्टेडियम के पास स्थित गोलचक्कर पर बनाया जा रहा है, एक ऐसा स्थान जहां से राजेंद्र नगर और करोल बाग की ओर से आने वाले लोग एमसीडी की सीमा से एनडीएमसी की सीमा में प्रवेश करते हैं।

दिसंबर तक खड़ा होगा 27 मीटर ऊंचा घंटाघर

एनडीएमसी के उपाध्यक्ष कुलजीत सिंह चहल ने बताया कि यह घंटाघर 27 मीटर ऊंचा होगा और इसमें चार दिशाओं में 2-2 मीटर व्यास की बड़ी गोलाकार घड़ियां लगाई जाएंगी। खास बात यह है कि इस संरचना में भीतर सीढ़ियां भी होंगी जिससे समय-समय पर रखरखाव और मरम्मत का कार्य किया जा सके। पूरे ढांचे को आरसीसी से तैयार किया जाएगा और उसकी बाहरी सतह पर क्ले ब्रिक (ईंट) की कलात्मक परत लगाई जाएगी, जिससे यह पारंपरिक और आधुनिक वास्तुकला का संगम बन सके।

क्यों खास है यह घंटाघर?

घंटाघर केवल समय दिखाने का यंत्र नहीं है, बल्कि यह शहर की धड़कनों का प्रतीक होता है। लुटियंस दिल्ली में एक जमाने में टाउन हॉल के सामने ऐसा ही घंटाघर हुआ करता था, जिसकी घंटियां पूरे इलाके को समय का बोध कराती थीं। 1933 में जंतर-मंतर के सामने पालिका केंद्र की भूमि पर बनाए गए इस ऐतिहासिक टाउनहॉल में ब्रिटेन से लाई गई विशालकाय घंटियां स्थापित की गई थीं। उस समय घड़ियों का आम लोगों में चलन नहीं था, इसलिए ये घंटियां ही समय सूचक थीं।

लेकिन समय के साथ बदलाव आया और 1984 में पुराने टाउनहॉल को तोड़कर वर्तमान पालिका केंद्र का निर्माण हुआ। उस दौरान घंटाघर को भी ध्वस्त कर दिया गया और इसकी ऐतिहासिक घंटियां एनडीएमसी भवन के प्रवेश द्वार पर प्रदर्शनी रूप में टांग दी गईं। दुर्भाग्यवश, 2007 में इनका भारी वजन सहन न कर पाने के कारण वे गिर गईं और अब ये एक शोकेस में बंद विरासत बनकर रह गई हैं।

घंटाघर बनेगा नई पहचान का प्रवेश द्वार

घंटाघर का प्रस्ताव खुद दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने दिया था। इसे एनडीएमसी और एमसीडी की सीमा के बिलकुल समीप, शंकर रोड पर तालकटोरा स्टेडियम के पास स्थित गोलचक्कर पर स्थापित किया जाएगा। यह वह स्थान है जहां करोल बाग और राजेन्द्र नगर की ओर से आने वाला यातायात एनडीएमसी क्षेत्र में प्रवेश करता है। इस लिहाज से घंटाघर न केवल एक सौंदर्यपूर्ण संरचना होगा, बल्कि यह नई दिल्ली में आने वालों के लिए एक प्रतीकात्मक 'गेटवे' भी बनेगा।

दिल्ली की विरासत को मिल रही नई पहचान

दिल्ली में घंटाघर की परंपरा नई नहीं है। हरिनगर, सब्जी मंडी, कमला मार्केट जैसे इलाकों में पहले से ही घंटाघर मौजूद हैं। मिंटो ब्रिज पर एमसीडी द्वारा एक घड़ी स्थापित की गई है जो एनडीएमसी से बाहर जाते वक्त यात्रियों को समय का आभास कराती है। लेकिन लुटियंस दिल्ली में ऐसा कोई प्रतीकात्मक ढांचा नहीं था जो इसकी भव्यता और ऐतिहासिकता को दर्शा सके। एनडीएमसी अब इस खालीपन को भरने जा रही है।

एनडीएमसी के अधिकारियों के मुताबिक घंटाघर का निर्माण कार्य जल्द ही शुरू कर दिया जाएगा और कोशिश की जाएगी कि यह दिसंबर 2025 तक पूरा हो जाए। इसके अलावा शहर के अन्य गोलचक्करों पर भी विभिन्न मूर्तियों और आर्ट वर्क्स को लगाने की योजना बनाई जा रही है ताकि दिल्ली को न केवल आधुनिक रूप दिया जा सके, बल्कि उसकी ऐतिहासिक पहचान को भी सहेजा जा सके।

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