Chicago

बांग्लादेश की राजनीति में उथल-पुथल, सुप्रीम कोर्ट ने जमात-ए-इस्लामी को दी चुनावी मंजूरी

बांग्लादेश की राजनीति में उथल-पुथल, सुप्रीम कोर्ट ने जमात-ए-इस्लामी को दी चुनावी मंजूरी

बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट ने जमात-ए-इस्लामी पार्टी का पंजीकरण बहाल कर दिया है। हसीना सरकार के दौरान यह पंजीकरण रद्द किया गया था। कोर्ट का फैसला देश की राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत है।

Bangladesh: बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने देश की विवादित राजनीतिक पार्टी जमात-ए-इस्लामी का पंजीकरण बहाल कर दिया है। यह वही पार्टी है, जिस पर 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तान का साथ देने और मानवता के खिलाफ अपराधों में लिप्त रहने के आरोप लगे थे। पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के कार्यकाल के दौरान जमात-ए-इस्लामी पर बैन लगाया गया था और उसका पंजीकरण रद्द कर दिया गया था। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने बांग्लादेश की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है।

हसीना सरकार के दौरान बैन, अब बहाली

साल 2013 में बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने ही जमात-ए-इस्लामी को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित किया था। इसके बाद दिसंबर 2018 में हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार चुनाव आयोग ने जमात का पंजीकरण रद्द कर दिया था। यह फैसला पार्टी की राष्ट्रविरोधी गतिविधियों और 1971 में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उसकी भूमिका के आधार पर लिया गया था। लेकिन अब, शेख हसीना के सत्ता से बाहर होने और अंतरिम सरकार के गठन के बाद, राजनीतिक माहौल बदल गया है।

मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने पहले ही हसीना की पार्टी अवामी लीग को भंग कर दिया है। ऐसे में जमात-ए-इस्लामी का पंजीकरण बहाल होना बांग्लादेश की राजनीतिक दिशा में बड़ा बदलाव माना जा रहा है। कोर्ट का यह फैसला उस वक्त आया है जब मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में गठित अंतरिम सरकार ने पार्टी पर से प्रतिबंध हटाए थे। इसके बाद जमात ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की और अब पंजीकरण बहाल होने के साथ ही चुनावी रास्ता साफ हो गया है।

चुनाव चिन्ह पर भी खुला विवाद

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि जमात-ए-इस्लामी को पारंपरिक चुनाव चिन्ह “तराजू” के तहत चुनाव लड़ने की अनुमति देना चुनाव आयोग के विवेक पर निर्भर करेगा। यानी अब पार्टी के चुनाव चिन्ह को लेकर भी विवाद खड़ा हो सकता है, क्योंकि 2013 में रजिस्ट्रेशन रद्द होने के साथ ही पार्टी का चुनाव चिन्ह भी खत्म कर दिया गया था।

जमात-ए-इस्लामी की प्रतिक्रिया

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जमात के वरिष्ठ वकील मोहम्मद शिशिर मनीर ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक जीत है। उन्होंने कहा, “दशकों से चल रही कानूनी लड़ाई का अब अंत हो गया है। हमें उम्मीद है कि अब बांग्लादेश में एक सशक्त संसद का गठन होगा। जमात के उम्मीदवारों को अब चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा और देश की जनता को विकल्प मिलेगा।”

अदालत के फैसलों में दिखा जमात के प्रति नरम रुख

गौरतलब है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने जमात के एक वरिष्ठ नेता ATM अज़हरुल इस्लाम को भी बरी कर दिया है। उन पर 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर मानवता के खिलाफ अपराध करने का आरोप था। उन्हें पहले मृत्युदंड की सजा सुनाई गई थी। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने न केवल अज़हरुल इस्लाम को राहत दी है, बल्कि जमात के लिए एक नई राह भी खोल दी है।

Leave a comment