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चीन की दोस्ती महंगी पड़ी: पाकिस्तान और ईरान ने उठाया भारी नुकसान

चीन की दोस्ती महंगी पड़ी: पाकिस्तान और ईरान ने उठाया भारी नुकसान

2025 में पाकिस्तान और ईरान ने चीन पर भरोसा किया, लेकिन संकट के समय ड्रैगन ने साथ नहीं दिया। भारत और इज़रायल से मिली हार और चीन की निष्क्रियता ने उसकी दोस्ती की सच्चाई उजागर कर दी।

Chinas Friendship: चीन ने पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान और ईरान जैसे देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी को बढ़ावा दिया, लेकिन जब 2025 में इन देशों पर संकट आया, तो ड्रैगन केवल बयानबाजी करता रहा। पाकिस्तान को भारत के साथ सैन्य संघर्ष में करारी हार मिली और ईरान को इजरायल और अमेरिका के हमलों में जबरदस्त नुकसान झेलना पड़ा। चीन ने इन दोनों मामलों में कोई ठोस सैन्य या कूटनीतिक समर्थन नहीं दिया। यह सवाल उठता है कि क्या चीन की दोस्ती सिर्फ नाम की है और क्या यह साझेदारी इन देशों के लिए आत्मघाती साबित हुई।

पाकिस्तान: 'आयरन ब्रदर' को मिला खोखला समर्थन

पाकिस्तान और चीन की दोस्ती को दशकों से मजबूत बताया जाता रहा है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) इसका बड़ा उदाहरण है। इस परियोजना में चीन ने 62 बिलियन डॉलर का निवेश किया, जिसमें ग्वादर पोर्ट, सड़कें और उर्जा परियोजनाएं शामिल हैं। चीन ने पाकिस्तान को आधुनिक हथियार भी दिए जिनमें J-10C फाइटर जेट, HQ-9 एयर डिफेंस सिस्टम और JF-17 थंडर विमान शामिल हैं। लेकिन मई 2025 में भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के समय चीन का समर्थन कागजों तक ही सीमित रह गया।

भारत के खिलाफ पाकिस्तान की सैन्य हार

2025 में भारत और पाकिस्तान के बीच सीमित सैन्य टकराव हुआ। भारत ने पाकिस्तान के कई हवाई अड्डों को नष्ट कर दिया। जिन एयर डिफेंस सिस्टम्स को चीन ने दिया था, वे भारतीय राफेल और S-400 मिसाइल सिस्टम के सामने बेबस दिखे। पाकिस्तान के हथियार और तकनीक चीन पर निर्भर थे, लेकिन युद्ध के मैदान में वे किसी काम नहीं आए।

चीन की चुप्पी और पाकिस्तान की निराशा

भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम की घोषणा के दौरान चीन ने न तो कोई सक्रिय भूमिका निभाई, न ही पाकिस्तान को वैश्विक मंचों पर समर्थन दिया। पाकिस्तान को उम्मीद थी कि चीन सैन्य और कूटनीतिक रूप से साथ देगा, लेकिन चीन ने केवल शांति की अपील की और खुद को पीछे खींच लिया। इससे पाकिस्तान की जनता और सेना के भीतर चीन के प्रति भरोसे में गिरावट आई।

आर्थिक दबाव में पाकिस्तान और CPEC का बोझ

CPEC परियोजना ने पाकिस्तान को बड़ी वित्तीय जिम्मेदारियों में डाला। 2025 में पाकिस्तान का व्यापार घाटा 43 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया। ईरान के साथ व्यापार बढ़ाने की कोशिश भी संतुलन नहीं ला सकी। चीन ने कर्ज दिया, लेकिन उस कर्ज से कोई राहत नहीं मिली।

ईरान: रणनीतिक साझेदार, फिर भी अकेला

2021 में चीन और ईरान के बीच 25 वर्षों की रणनीतिक साझेदारी पर सहमति बनी थी। इसमें ऊर्जा, सुरक्षा और सैन्य सहयोग शामिल था। ईरान चीन को अपने तेल का 90 प्रतिशत निर्यात करता है। जनवरी 2025 में चीन ने ईरान को 1000 टन सोडियम परक्लोरेट भी भेजा जिससे खैबर शेकन मिसाइलें बन सकती थीं। लेकिन जब अप्रैल 2025 में इजरायल और अमेरिका ने ईरान पर सैन्य कार्रवाई की, तो चीन ने सैन्य रूप से कोई मदद नहीं की।

इजरायल-ईरान युद्ध में चीन की निष्क्रियता

12 दिनों तक चले इस युद्ध में इजरायल ने ईरान के परमाणु ठिकानों और सैन्य अड्डों पर हमले किए। अमेरिका ने बी-2 बॉम्बर से ऑपरेशन मिडनाइट हैमर चलाया। जवाब में ईरान ने 450 मिसाइलें और 1000 ड्रोन दागे लेकिन इजरायल का आयरन डोम सिस्टम इन्हें रोकने में सफल रहा। इस संघर्ष में चीन ने सिर्फ बयान दिए और संयुक्त राष्ट्र में रूस और पाकिस्तान के साथ एक प्रस्ताव पेश किया जो किसी ठोस नतीजे तक नहीं पहुंचा।

ईरान का भयानक नुकसान

इस युद्ध में ईरान को जान-माल और रणनीतिक दोनों स्तर पर बड़ा नुकसान हुआ। 150-200 बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ। करीब 800 लोगों की मौत हुई और 3000 से अधिक घायल हुए। परमाणु कार्यक्रम को भी बड़ा झटका लगा। नतांज और फोर्डो में सेंट्रीफ्यूज नष्ट हुए और 21 IRGC कमांडर व 10 परमाणु वैज्ञानिक मारे गए।

चीन ने अपने नागरिक निकाले, ईरान को नहीं बचाया

जब ईरान पर हमला हुआ, तो चीन ने अपनी प्राथमिकता साफ कर दी। उसने अपने 3125 नागरिकों को ईरान से बाहर निकाला लेकिन सैन्य सहायता नहीं दी। इससे यह संदेश गया कि चीन अपने हितों को प्राथमिकता देता है न कि साझेदार देशों की सुरक्षा को।

पाकिस्तान और ईरान की एकजुटता

पाकिस्तान और ईरान ने इस संकट के समय एक-दूसरे के साथ एकजुटता दिखाई। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने ईरानी राष्ट्रपति से फोन पर बात कर समर्थन जताया। लेकिन चीन की चुप्पी दोनों देशों के लिए चिंताजनक रही।

चीन की रणनीति: स्वार्थ और गैर-हस्तक्षेप

चीन ने हमेशा गैर-हस्तक्षेप की नीति अपनाई है। वह युद्धों से दूरी बनाए रखता है, लेकिन आर्थिक और राजनीतिक लाभ लेने में पीछे नहीं रहता। पाकिस्तान और ईरान दोनों के साथ चीन का रवैया यह दिखाता है कि वह केवल आर्थिक साझेदारी तक सीमित रहना चाहता है।

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