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गुटबाजी से जूझती कांग्रेस, उपचुनाव में हार के बाद लगी इस्तीफों की झड़ी

गुटबाजी से जूझती कांग्रेस, उपचुनाव में हार के बाद लगी इस्तीफों की झड़ी

पंजाब और गुजरात की उपचुनाव सीटों पर कांग्रेस की हार के बाद दो नेताओं ने पद छोड़ा। हार के साथ-साथ पार्टी में गुटबाजी सामने आई है, जिससे संगठनात्मक संकट और गहराता दिख रहा है।

By Polls Result 2025: हाल ही में पंजाब और गुजरात की विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा है। गुजरात की विसावदर और कडी सीट तथा पंजाब की लुधियाना वेस्ट सीट पर कांग्रेस को सफलता नहीं मिली। इन तीनों ही सीटों पर पार्टी का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा, जिसके बाद दोनों राज्यों से कांग्रेस के दो बड़े नेताओं ने इस्तीफा दे दिया है।

पंजाब में हार और गुटबाजी दोनों उजागर

लुधियाना वेस्ट सीट से उपचुनाव हारने के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष भारत भूषण आशु ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए यह कदम उठाया, लेकिन इसके पीछे की असल वजह सिर्फ हार नहीं है। पार्टी के अंदर लंबे समय से चली आ रही गुटबाजी अब खुलकर सामने आ चुकी है।

भारत भूषण आशु का पार्टी अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वडिंग और विधानसभा में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा से मतभेद किसी से छिपे नहीं हैं। कहा जा रहा है कि आशु ने चुनाव से पहले ही पार्टी नेतृत्व को यह कह दिया था कि राजा वडिंग और बाजवा उनके प्रचार में शामिल न हों। पार्टी ने इस मांग को मान लिया, लेकिन चुनाव परिणाम उनके पक्ष में नहीं आए। अब सवाल उठ रहा है कि क्या यह रणनीति गलत थी या गुटबाजी ने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया।

गुजरात में भी गहराया संकट

गुजरात में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शक्ति सिंह गोहिल ने उपचुनाव में हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया है। उनके इस्तीफे ने भी कांग्रेस में गुटबाजी की तस्वीर को और साफ कर दिया है। गुजरात कांग्रेस लंबे समय से आंतरिक कलह का शिकार रही है। शक्ति सिंह गोहिल के समर्थकों का एक गुट है, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी और स्वर्गीय अहमद पटेल के समर्थकों का अलग-अलग प्रभाव बना हुआ है। इसके अलावा भी कई छोटे-छोटे गुट पार्टी को कमजोर कर रहे हैं।

गुजरात में विसावदर और कडी सीट पर उपचुनाव में पार्टी की हार के पीछे प्रचार की रणनीति कमजोर रही। ऐसा कहा जा रहा है कि कांग्रेस नेताओं के आपसी मतभेद के कारण एकजुट होकर चुनाव प्रचार नहीं हो सका, जिसका लाभ भाजपा और आम आदमी पार्टी को मिला।

गठबंधन की कमी या नेतृत्व की चुनौती

कांग्रेस इन उपचुनावों में जनता को जोड़ने और जमीनी स्तर पर प्रभावी अभियान चलाने में नाकाम रही। भारत भूषण आशु और शक्ति सिंह गोहिल जैसे नेताओं ने अपनी तरफ से प्रयास किए, लेकिन स्थानीय नेतृत्व के आपसी तालमेल की कमी ने पार्टी की संभावनाओं को कमजोर कर दिया। नतीजतन, जहां पंजाब में आम आदमी पार्टी ने बाजी मारी, वहीं गुजरात में भाजपा ने एक सीट और आप ने दूसरी सीट जीत ली।

नेतृत्व पर सवाल, संगठन में बदलाव की मांग

इन हारों के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच यह मांग तेज हो गई है कि पार्टी के संगठनात्मक ढांचे में बड़े बदलाव किए जाएं। राज्य स्तर पर नेताओं के बीच संवाद की कमी, गुटबाजी और एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी पार्टी को लगातार कमजोर बना रही है। राहुल गांधी तीन बार गुजरात का दौरा कर चुके हैं, लेकिन गुटीय कलह को सुलझाने में पार्टी सफल नहीं रही है।

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