भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की संभावनाओं पर चर्चा लंबे समय से चल रही है। इसी संदर्भ में चुनाव आयोग की एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें बताया गया है कि अगर देश में 2029 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाते हैं, तो इसके लिए भारी मात्रा में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की जरूरत पड़ेगी।
One Nation One Election: भारत में लंबे समय से "एक देश, एक चुनाव" (One Nation, One Election) की अवधारणा पर चर्चा होती रही है। अब इस मुद्दे पर गंभीर विचार-विमर्श शुरू हो चुका है और चुनाव आयोग (ECI) ने भी इससे जुड़ी तैयारी शुरू कर दी है। हाल ही में चुनाव आयोग ने एक संसदीय समिति को जानकारी दी है कि अगर देश में 2029 में लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाते हैं, तो इससे जुड़ी लागत और लॉजिस्टिक्स कितने बड़े पैमाने पर होंगे।
₹5300 करोड़ की लागत, लाखों नई मशीनों की जरूरत
चुनाव आयोग के अनुसार, एक साथ चुनाव कराने के लिए करीब 48 लाख बैलेटिंग यूनिट (BU), 35 लाख कंट्रोल यूनिट (CU) और 34 लाख VVPAT मशीनों की जरूरत पड़ेगी। इन मशीनों की खरीद पर कुल मिलाकर ₹5,300 करोड़ से अधिक का खर्च अनुमानित है। यह खर्च केवल मशीनों की खरीद का है, जबकि लॉजिस्टिक्स, स्टाफिंग, ट्रैनिंग और सुरक्षा पर अलग बजट की आवश्यकता होगी।
वर्तमान में आयोग के पास लगभग 30 लाख बैलेटिंग यूनिट, 22 लाख कंट्रोल यूनिट और 24 लाख VVPAT हैं। लेकिन इनमें से बड़ी संख्या में मशीनें 2013-14 में खरीदी गई थीं और 2029 तक ये अपनी औसत 15 साल की उम्र पूरी कर लेंगी। इससे करीब 3.5 लाख BU और 1.25 लाख CU अप्रचलित हो जाएंगी, जिन्हें बदला जाना जरूरी होगा।
इसके अलावा, चुनाव आयोग का मानना है कि 2029 में पोलिंग स्टेशनों की संख्या 2024 की तुलना में 15% तक बढ़ सकती है। 2024 में कुल 10.53 लाख पोलिंग स्टेशन थे, और यह संख्या 2029 में बढ़कर लगभग 12.1 लाख हो सकती है। प्रत्येक पोलिंग स्टेशन पर दो सेट EVM की आवश्यकता होती है, इसके अलावा रिज़र्व स्टॉक के रूप में भी 70% BU, 25% CU और 35% VVPAT अलग से रखे जाते हैं।
मशीनों की आपूर्ति और तकनीकी अपग्रेड भी चुनौती
EVM और VVPAT मशीनों की आपूर्ति अपने आप में एक बड़ी चुनौती है। 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी चुनाव आयोग को सेमीकंडक्टर की आपूर्ति में बाधा का सामना करना पड़ा था, जिससे मशीनों का निर्माण प्रभावित हुआ। इसलिए आयोग 2029 के लिए पहले से ही ऑर्डर देकर इनका स्टॉक तैयार रखना चाहता है।
साथ ही आयोग को यह भी ध्यान रखना होगा कि तकनीकी बदलाव के अनुरूप EVM को अपग्रेड करना पड़ सकता है। फिलहाल देश में M3 वर्जन की EVM का उपयोग हो रहा है, लेकिन भविष्य में इसकी क्षमता और सुरक्षा को बढ़ाने की जरूरत हो सकती है।
EVM-VVPAT रखने के लिए चाहिए अतिरिक्त गोदाम
एक साथ चुनाव कराने के लिए केवल मशीनें होना ही पर्याप्त नहीं है, उन्हें सुरक्षित तरीके से रखने के लिए गोदामों की भी जरूरत होगी। फिलहाल कई राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम के पास अपने स्थायी गोदाम नहीं हैं। ऐसे में केंद्र को इन राज्यों के लिए गोदाम निर्माण पर भी निवेश करना होगा।
12 लाख से अधिक पोलिंग स्टेशनों पर चुनाव कराने के लिए कर्मचारियों की तैनाती और ट्रेनिंग भी एक बड़ी जिम्मेदारी होगी। चुनाव प्रक्रिया में लगे कर्मचारियों को मशीनों के संचालन की उचित ट्रेनिंग देनी होगी, जिसकी शुरुआत लोकसभा चुनाव से छह महीने पहले और विधानसभा चुनाव से चार महीने पहले करनी होती है।
इसके अलावा, मशीनों की पहली जांच के लिए मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों के इंजीनियरों को भी नियुक्त करना होता है। सुरक्षा के लिहाज से गोदामों और पोलिंग बूथों की निगरानी के लिए केंद्रीय और राज्य बलों की भारी तैनाती जरूरी होगी।
क्या खर्च कम होगा?
संसदीय समिति की ओर से पूछा गया था कि क्या एक साथ चुनाव कराने से खर्च में कमी आएगी? चुनाव आयोग का तर्क है कि मशीनों की खरीद पर भले ही एकमुश्त भारी लागत आएगी, लेकिन बार-बार चुनाव कराने की तुलना में लॉजिस्टिक और प्रशासनिक खर्च लंबे समय में कम हो सकते हैं। साथ ही यह भी तर्क दिया गया कि इससे चुनावी प्रक्रिया अधिक सुचारु, पारदर्शी और व्यवस्थित हो सकती है।